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टूट कर बिखर जाऊ जो, ऐसा कोई दर्पण नहीं मै…
Hindi Poetry |
कभी जलती है रातों की चांदनी
कभी बुझती है सुबहो की रौशनी
कुछ बदली है फ़िज़ायों की रंगत
कुछ कडवी है उम्मीदों की चाशनी
वक़्त भी चाहता है यहाँ, मै देख उसे बदल जाऊ
पर वक़्त जो बदल दे मुझे, ऐसा कोई बचपन नहीं मै
टूट कर बिखर जाऊ जो, ऐसा कोई दर्पण नहीं मै
अच्छा प्रयास लेकिन मुझे कुछ कमी नज़र आई ……आपके दो सेर अच्छे हैं लेकिन बाकी सेर में कुछ कमी महेशुश होती हैं ..जय श्री कृष्ण
मुझे शब्द चयन बेहद पसंद आया 🙂