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टूट कर बिखर जाऊ जो, ऐसा कोई दर्पण नहीं मै…

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Hindi Poetry

कभी जलती है रातों की चांदनी

कभी बुझती है सुबहो की रौशनी

कुछ बदली है फ़िज़ायों की रंगत

कुछ कडवी है उम्मीदों की चाशनी

वक़्त भी चाहता है यहाँ, मै देख उसे बदल जाऊ

पर वक़्त जो बदल दे मुझे, ऐसा कोई बचपन नहीं मै

टूट कर बिखर जाऊ जो, ऐसा कोई दर्पण नहीं मै

2 Comments

  1. kishan says:

    अच्छा प्रयास लेकिन मुझे कुछ कमी नज़र आई ……आपके दो सेर अच्छे हैं लेकिन बाकी सेर में कुछ कमी महेशुश होती हैं ..जय श्री कृष्ण

  2. prachi sandeep singla says:

    मुझे शब्द चयन बेहद पसंद आया 🙂

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