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दर्पण-क्षति

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Hindi Poetry

मैं बुरी तरह से खिजा हुआ था

एक एक करके वो

दलदल में गिरते जा रहे थे

द्विगुणन के हक के लिये?

मृत पेलिकन, चोंच के झोले खाली

कोई हवा में चीटियाँ पकड़ रहा था

मेरा सिर गर्म होकर फड़क रहा है

मुझे कोई ठन्डा सेक दे दो

मैं जल रहा हूँ

एक नौ साल की भोली लड़की

अस्सी साल के बृद्ध ने किया बलात्कार

जुड़वाँ गर्भ मैं पागल हो जाऊँगा

वो अब भी स्वर्णिम समुद्र-तट की

बात कर रहे थे और आदर्श आग्रह की

कई तरह के भगवानों को गिनने में बड़ी देर हो गयी थी

वो पीत शरीर अपनी नकाब उतार रहा था

पीड़ाओं ने मृत्यु से उधार माँगी है

और भ्रूण एक मन्दिर बन जाता है

सतीश वर्मा

One Comment

  1. prachi sandeep singla says:

    m touched!!!

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