« »

देश द्वेष का हो रहा नित्य प्राय पर्याय,

1 vote, average: 4.00 out of 51 vote, average: 4.00 out of 51 vote, average: 4.00 out of 51 vote, average: 4.00 out of 51 vote, average: 4.00 out of 5
Loading...
Aug 2010 Contest, Hindi Poetry

हुई विकट उपदेशकों की भीषण भरमार  

रातों दिन उपदेश से हुआ देश लाचार.
  

धन हाथों का मैल है सभी रहे समझाय,

टी वी चैनल खोल खुद  दोउ हाथ कमाय,
  

कोई है समझा रहा बस मुफीद है योग.

इससे   भागें   अंततः  जड़ से सारे  रोग .
  

केवल   भूखे   पेट  को  कित  कोई भर  पाय  

इसका  हुनर  न  रास्ता कोई संत  बताय .
  

भूखे  भजन   हो  सके  इतना  इन्हें   याद

ऐसे  सत  उपदेश से देश  हो  बर्बाद .
  
देश द्वेष का हो रहा नित्य प्राय पर्याय,
किन्तु परस्पर प्रेम का पाठ कौन समझाय.

4 Comments

  1. Vishvnand says:

    हार्दिक बधाई
    बहुत सुन्दर भावनिक
    और अर्थपूर्ण कटाक्ष के दोहे से
    हमरे ये मन भाय …

    “देश द्वेष का हो रहा नित्य प्राय पर्याय,”
    और यही द्वेषी हमें प्रेम पाठ समझाय …
    किसने सोचा था यहाँ ऐसी ये गति आय…..

  2. U.M.Sahai says:

    अच्छा कटाक्ष, एस.एन.

Leave a Reply