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प्रभु, तुम पे भरोसा हमारा …..! (भक्तिगान)
Hindi Poetry |
यह इक भक्तिगीत जो इक समूहगान के रूप में उभरा था उसे जिस तर्ज़ में compose किया गया था उसी में गाकर इसके पॉडकास्ट सहित प्रस्तुत किया है
प्रभु, तुम पे भरोसा हमारा …..! (भक्तिगान)
प्रभु, तुम पे भरोसा हमारा, फिर क्या कठिनाई है,
हम तेरे ही हैं चाकर, हमें क्या तनहाई है ….!
सुख में दुःख में बस तेरा हम ‘नाम’ लिए जाते हैं,
जो सामने काम आ जाए, तन मन से करते हैं,
खुश हो कर करते हैं,
ये तेरी ही पूजा है, विश्वास हमारा है,
हम तेरे ही हैं चाकर, हमें क्या तनहाई है ….!
भजनों में होकर तन्मय, अंतर्मन सुख होता है,
मनुष्य गण में जन्म दिया है, सन्मान ये कितना है,
तेरे चरणों को छूने,
तेरे चरणों ही रहने, दिल तरसा रहता है,
हम तेरे ही हैं चाकर, हमें क्या तनहाई है ….!
ना हमें हमारी चिंता, ना डरें किसीसे हम ,
हों मगन ध्यान में तेरे, बस इतना सोंचें हम,
तेरी राह समझ हम पायें,
कुछ तेरे काम आ जाएँ, यही मनोकामना है,
हम तेरे ही हैं चाकर, हमें क्या तनहाई है ….!
प्रभु, तुम पे भरोसा हमारा, फिर क्या कठिनाई है,
हम तेरे ही हैं चाकर, हमें क्या तनहाई है ….!
” विश्व नन्द ”
good bhaktigeet. thank you for the podcast.
@anupama
Thanks for the comment & appreciation.
aap ki rachna ko me kese word me bata sakta hu lekin sir ek saval
सुख में दुःख में बस तेरा हम ‘नाम’ लिए जाते हैं,
ye pankti me aaj kal yahi he ki hum sirf dukh me hi bhgvaan ko yaad karte he right!!!!!!
@kishan
“दुःख में सब सुमिरन करें सुख में करें न कोय
जो सुख में सुमिरन करें तो दुःख काहे होय “…. ये संत कबीर की संतवाणी याद रखनी चाहिए. सुख में भगवान का ध्यान बनाए रखना ज्यादा जरूरी रहता है और प्रभु से यह अनुसंधान बनाए रखने के लिए ” नाम स्मरण” ही इक उत्तम और सहज उपाय है.
Dil ko choone wala bhaktigeet. Thank you.
@suresh dangi
गीत की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद.
बहुत अच्छा! बहुत भक्तिपूर्ण!! हार्दिक बधाई
@chandan
कमेन्ट के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद.
बहुत ही सुन्दर भक्ति-सुर-सरिता का मंद-मंद मधुर प्रवाह.
हार्दिक बधाई !!!!
निवेदन-
” प्रभु जी मोरे अवगुण चित न धरो.”
गुस्ताखी माफ़- वही हाल अपना आज कल है जो आपका mid of 60’s में हुआ करता होगा.
(जस्ट फन ..)..फुर्सत में अवश्य दिल से बातें करेंगे….. सादर प्रणाम.
@Harish C.Lohumi
कमेन्ट के लिए बहुत शुक्रिया.
संत सूरदास ने रची “प्रभु मोरे अवगुण चित न धरो ” ये तो प्रभु की बहुत गहन और भव्य प्रार्थना है. इसका मतलब आप प्रभु का सम्पूर्ण अस्तित्व मानने लगे हैं, अपने अवगुण पहचानने लगे हैं, प्रभु के असली भक्त हो चुके हैं तो फिर प्रभु की कृपा पा आपमें सतगुण का संचार होने क्या देरी है. बहुत सुन्दर स्तिथि है .
हार्दिक बधाई
सुन्दर गीत.
@Raj
कमेन्ट के लिए हार्दिक धन्यवाद.