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बदला स्पर्श……!
Hindi Poetry |
बदला स्पर्श……!
बहुत सालों पहले
मेरे बेटे के जन्म के कुछ महीनों बाद
स्पर्श की जो स्तिथि थी
वह इस रचना में बयाँ हुई थी
“स्पर्श……!
यह स्पर्श न अब वो स्पर्श रहा,
यह स्पर्श न अब कुछ स्पर्श रहा.
था स्पर्श यही, इसमे तब थी कुछ ऐसी कम्पन,
बढ़ जाती थी दिल की धड धड धड धड़कन,
इसके मधुसिंचन से मन में, उठती थी लहरें रोम रोम,
कुछ ऐसी थी इसकी सरगम……
अब स्पर्श यही जब होता है,
कहता है “घर में दाल नही”…..!
था स्पर्श यही, इसमे थी कितनी लाज भरी,
जो बिना कहे सब कह जाती थीं, प्यारी बातें दिल की,
हर एक इशारे पर इसके, होते थे कुछ अंदाज नए,
अब स्पर्श यही जब होता है,
कहता है, “मुन्ना रोता है”………..!
यह स्पर्श कहाँ वो स्पर्श रहा,
यह स्पर्श न अब कुछ स्पर्श रहा …….!. “
आज जब मेरी शादी की
४५ वीं सालगिरह पास आयी है
तो यही स्पर्श मुझसे पूछ रहा है
अब कहो कैसा क्या हो गया है
और लगता है वह हँसकर कह रहा है
बताओ अब कौन तुम्हारे जीवन का आनंद है
कौन तुम्हारे जीवन का आधार है
जो आज तक की तुम्हारी जिन्दगी का सार है
तुम मेरे जीवन की अमानत हो
जीवन की प्यारी आदत हो
अब तुम नहीं बस हम हो
और मैं, मैं कहाँ, मैं तो तुम हो …..
” विश्वनंद ”
bhut achha andaz sir aap ka..jay shree krishna
kishan,
Dhanyavaad
rooh ko sparsh kar gayii sir,
congrats !!!!
@Harish Chandra Lohumi
Many many thanks