« दिल का किराया | तीन त्रिवेणी- 9! » |
हर सुबह!
Hindi Poetry |
चुनती हूँ हर सुबह
अनाज में से कंकर
वही जो मुंह का
स्वाद बिगाड़ देते है!
बीनती हूँ हर सुबह
जीवन राह में उभरे पत्थर
वही जो उखाड़ फेकने के बाद भी
देर तक चुभते है!
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Hindi Poetry |
चुनती हूँ हर सुबह
अनाज में से कंकर
वही जो मुंह का
स्वाद बिगाड़ देते है!
बीनती हूँ हर सुबह
जीवन राह में उभरे पत्थर
वही जो उखाड़ फेकने के बाद भी
देर तक चुभते है!
PATHAR SAMAJKAR PHENK DETHE HO
PAHADSE NIKLATHA MAGAR THUMARE LOGONE
MUJHE DALDHIYA KHANEME
KHESE REHAM DIL HE INSAN
FHIR BE HAM PHATTAR JO HE
JINDAGI BANATHE HAI APKI HAR KAMOME
@gr kaviyoor,
thanks a lot!
bahut gehre bhaav liye hue hai aapki kavita!
@Santosh,
thank you!
बहुत सुन्दर, बधाई
पर
यही तो होता है हर सुबह
गर हम देखते हैं TV news
या पढ़ते हैं अखबार … 🙂
@Vishvnand,
shukriya sir!
सुन्दर भाव,
liked veryy much 🙂