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समकालीन

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Hindi Poetry

एक नीले ग्रीष्म के

लड़खड़ाते प्रवेश के समय

तुम एक मौन

शिकार बन जाते हो

मैं अपनी हार स्वीकार कर लेता  हूँ

उन पाषाणों से

जो मेरी प्रज्ञा पर

गिर रहे थे

रोज़वुड को कार्बन का डर

सता रहा था

झुटपुटे में अधर्म्य प्रेम को

पुनः समाकलन करने में

भविष्यवाणियों में तैरने के पूर्व

जल की जांच करते हुए

मैंने किनारे से कहा

परिपक्त लहरों को पकड़े रहना

सतीश वर्मा

One Comment

  1. Vishvnand says:

    ये समकालीन है
    तो हम तो गतकालीन हो ही गए …
    क्षमस्व

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