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स्वभाव की गल्ती …!
Hindi Poetry |
स्वभाव की गल्ती …!
मैं तब इंजीनिअरिंग के आखरी वर्ष में पढ़ रहा था
मेरा एक वर्ग विद्यार्थी, जो अलग अलग सा अकेला रहता था,
उन दिनों मेरे कुछ करीब सा आ गया था,
मेरा अच्छा सा दोस्त बन गया था
मेरे साथ साथ अभ्यास करना चाहता था
पता चला कोई बड़े बाप का बेटा है
मरीन ड्राइव के पास बड़े कम्पनी फ्लैट में रहता है
उसने एक दिन मुझे अपने घर लंच और साथ पढ़ने के लिए बुलाया
जब उसके घर गया पता चला वो अपनी माँ का बहुत लाडला है
उसकी माँ ने मुझे बताया वो मेरा बहुत आदर करता है
मेरे बारे में उन्हें बहुत कुछ बताता रहता है
और आज का मेरा खाना उसीने अपने हाथों मेरे लिए बनाया है
मैं अवाक् रह गया क्यूंकि मेरी माँ तो मुझे किचन में ही नहीं आने देती थी
मुझे कुछ खाना बनाना समझना तो बड़े दूर की बात थी.
मुझे तब पता चला खाना पकाना उसकी hobby ही थी.
सच में खाने में हर चीज़ बड़ी जायकेदार बनी थी ….
मैंने उसे बहुत सराहा …..
दोपहर कुछ study करने के बाद
शाम को मैंने उससे कहा चलो अब
मरीन ड्राइव पर ज़रा मजे से टहल कर आएँ ,
तो मुझसे बोला उसे ये बिलकुल अच्छा नही लगता.
लोग पैरापेट पर बैठे रहते आते जाते लोगों को निहारते रहते हैं
उसे वहां जाने या टहलने में बड़ी अकुचन और शर्म महसूस होती है.
मैं फिर अवाक सा रह गया,
मैंने उससे कहा “तुम ऐसा क्यूँ समझते हो
की लोग वहां तुम्हे निहारने बैठते हैं
तुम जब टहलने जाते हो तो कितनों को निहारते रहते हो”
वो बोला “किसी को नहीं, मुझे निहारने में शर्म आती है ”
मैंने कहा “तो तुम क्यू समझते हो के वो ऐसे निहारते होंगे”,
वो बोला “क्यूँ कि वो वहां बैठकर निहारने वाले बेशर्म होते हैं”
कितना कुछ कहने पर भी मैं उसे न समझा पाया कि
उसकी यह इतनी आत्मकेंद्रित भावनाएं और समझ गलत है,
सब अक्सर अपने अपने बारे में ही सोचते हैं, औरों के बारे में नहीं,
पर वो नहीं माना और उस दिन हम मरीन ड्राइव पर घूमने नही गए.
हाँ उसने मुझसे इस बारे में और सोचने का वादा जरूर किया ….
ये तो एक बात हुई
पर सच में सोचा जाय तो
हम भी कई बार भूल कर फिजूल आत्मकेंद्रित हो ऐसे विचारों के शिकार हो जाते हैं
समझते हैं कि कोई दूसरे हमारे ही बारे में विचार करते हैं
दो दोस्त अगर दूर कुछ बातें कर रहे हैं
तो समझते हैं कि हमारी ही बुराई कर रहे हैं
कविता पर कोई कडा कमेन्ट दें तो समझते है जबरन हमें नीचा दिखा रहे हैं
कोई कविता पढ़ें तो समझते हैं, ये अपने ही पर रचा कटाक्ष है
और इस स्वभाव की गलती से हमें बचे रहने की सख्त जरूरत है
क्यूँ कि इस स्वभाव की गलती से हम खुद को और औरों को भी फिजूल दुःख पहुंचाते हैं ……..
मैं अपने हर इक की इस स्वभाव की गलती की बात कर रहा हूँ…..
” विश्वनंद “
बहुत सही लिखा है आपने विश्व्नन्द जी,
लोगो के कमेन्ट को रचनाकारो ने कभी भी अन्यथा नही लेना चाहिये । यह जरूरी नही कि हर एक रचना हर एक को पसन्द आ ही जाये । यह याद रखना बहुत ही जरूरी है कि रचनाकार से ज्यादा अहमियत श्रोता,पाठक,दर्शक आदी की होती है। जरा सोचिये, यदि उपभोक्ता ही नही तो उत्पादन किस काम का ।
बहुत सुन्दर रचना आपकी, दिल को छू गयी।
@CS_Aithani, main bhi sahmat, magar apni bhavna vyakt karne ka adhikar kavi ko bhi utna hi hai kyon,nahin.
@siddha Nath Singh
आपकी बात बहुत लाजमी है और इसका कविता में ध्यान दिया गया है
“कोई कविता पढ़ें तो समझते हैं, ये अपने ही पर रचा कटाक्ष है
और इस स्वभाव की गलती से हमें बचे रहने की सख्त जरूरत है”
किसी भी कविता को वाचक ने personalize नहीं करना चाहिए
इसी का मतलब है कवि को अपनी बात कहने की freedom है और होनी चाहिए. हाँ वाचक को उसपर अपना considered कमेन्ट देने का भी हक़ है जो polite हो और कवि को भी हक़ उस कमेन्ट पर अपनी polite reply देने का..
बात बिगड़ती है जब हम बातों को बेकार में personalize करते हैं …
@CS_Aithani
इस कमेन्ट के लिए बहुत धन्यवाद. आपका कमेन्ट बहुत delighting सा लगा. मेरी इस posting का प्रयास सफल हुआ.
कवि और वाचक का नाता दोनों के आनंद के लिए बहुत अहमियत रखता है और दोनों को इसपर सही ध्यान देना चाहिए. बेकार बातें personalize करने के अपने स्वभाव की गल्ती को उभरने नही देना चाहिए. यही समझाना मेरी पोस्टिंग का धेय भी था….. .
@Vishvnand, मेरा रोल यहां पर केवल रीडर का है, मैं इस मन्च की आपसी नोंक – झोंक के झोंकों से बिल्कुल अन्जान हूँ । हिन्दी-प्रेम के कारण कभी-कभार इस साइट पर सर्फ़ कर लेता हूँ । यदि आपके दोनों गुटों में से किसी को भी आघात पहुँचा हो तो क्रपया अनदेखी करें । धन्यवाद्।
@cs_aithani
यहाँ ज्यादातर members खुद अपनी कविता लिखते और पोस्ट करते हैं और इक दूजे की रचनाओं को पढ़कर उनपर अपनी राय प्रकट करने का आनंद भी लेते हैं इसीलिये यहाँ authors और वाचक ऐसे कोई गुट नहीं हैं और आपके कमेन्ट में कुछ आघात करने वाली बात हो ये बात ही नहीं है. यह स्पष्ट करना चाहता हूँ …. 🙂
अच्छी मनोवैज्ञानिक रचना है सुंदर विश्लेष्ण किया है
बधाई
डॉ.वेदव्यथित
@dr. ved vyathit
कमेन्ट के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया…
@cs_aithani, विश्वानन्द सर से सहमत
@prachi sandeep singla
Thank you so very much.
Your poems & contents, comment on others poems and replies to others comments on your poem I am very happy to say are quite a testimony to what I am trying to solicit in this posting of mine.
lagatee hai sir, naashte me garam samausaa offer kiyaa gayaa thaa. abhi bhi garam lag rahaa hai.
Congrats !!!