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ज़िन्दगी!

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Hindi Poetry

1. भूख का टुकड़ा ले के
रगडती चली जा रही है
हाय, ज़िन्दगी बढ़ी चली जा रही है!

2. एक पुल लटका हुआ है
इधर झूठ क्षणभंगूर काया पर चमक रहा है
उधर सच दमकती मुस्कान लिए मेरे होठों पर सजा है!

3. ज़िन्दगी और क्या है?
मेरे आस पास में सजे रंग ही तो है!
बारी-बारी सभी रंग एक दूसरे पर हावी होते है
पर निष्कर्ष कोरा ही रहता है!

4. शब्दों का फेर है
हर काम में थोड़ी देर है
ज़िन्दगी फिर भी
अंधेर नहीं, सिर्फ सवेर है!

5. तुमसे ज़िन्दगी है
तुम ज़िन्दगी से नहीं
क्यूँ ना, तुम रोज़ नया बहाना ढुंढ़ो
मुस्कुराने का!

6 Comments

  1. dr. ved vyathit says:

    निरंतर लिखो
    रूपक के निर्वहन ध्यान दो

  2. sushil sarna says:

    अच्छा प्रयास – व्यथित जी सहमत हूँ-

  3. parminder says:

    बहुत सही, और सुन्दर, आशावादी रहना ही ठीक होता है|

  4. prachi sandeep singla says:

    like it rachna esply d 3rd stanza 🙂

  5. Tushar Mandge says:

    ya good one..
    आप तीसरे पद्य को अंत में रखे तो भी अच्छा लगेगा

  6. rajdeep says:

    a great poem

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