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पुरबा बहेले सिवनवां

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Hindi Poetry, Sep 2010 Contest
   
पुरबा बहेले सिवनवां
कि भीतरे  अंगनवां
उमसिया से जीव जा’ता’ I. 
झम झम बरसे बदरिया
सोन्हायिल बा बखरिया
दिवलिया में सींव जा’ता’ I
नाहीं बा नगीचे सजनवां
हुमक उठे  मनवां,
उनहिं के करीब जा’ता’ I
रह रह चमके बिजुरिया,
कि जईसे मुखारिया
हो पियवा के दीख जा’ता’ I 

 

 

4 Comments

  1. kishan says:

    bahut achha andaz sir….jay shree krishna

  2. Harish Chandra Lohumi says:

    इस मिट्टी की भीनी-भीनी सौंधी सुगन्ध से भला कौन बच सकता है एस एन साहब्।
    बहुत अच्छे……। बनी रहे ……।

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