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बरखा तेरे कितने रूप
Hindi Poetry, Sep 2010 Contest |
नभ के आँचल से
पानी की फुहार जब,
धरा को अपने आगोश मे,
लेती है,तो बरखा कहलाती है,
बरखा कई रूपो मे आती है!
“प्रेम”रूप मे बरखा
पिया मिलन की चाह,
जागती है,मन मे प्रेम धुन,
बज उठती है,और जी करता है,
घर की मुंडेर पे, पी संग बैठ कर,
आस्मा से गिरते मोतिओ को ,
घंटे निहारते रहे,
ये है”आनंदमई बरखा”
“नटखट” रूप मैं बरखा
बच्चो को पूकारती है,
और बच्चे ,नंगे पाओ बाहर आ जाते है,
और बरखा की बूँदो के साथ खेलते है,
उनके चेहरे पे जो भाव आते है,
वो बरखा ही ला सकती है,
ये है”एक प्यारी दोस्त बरखा”!
“ऊमीद” के रूप मे बरखा
किसानो की आशाओ को,
पूरा करती है,उनकी मेहनत को
अंजाम देती है,उनका महीनो का इंतज़ार
ख़तम होता है,और हर तरफ बारिस के गीत
फ़िज़ा मैं घुल जाते है,
ये है“आनपूर्णा जैसी बरखा“!
‘आनंद के रूप मे बरखा,
तपती गर्मी से निजात दिलाती है,
परिवेश मे हर तरफ शीतलता,
और मन मे सुकून का अहसास,
आँखे आसमान को देख
शुकून के लिए शुक्रिया करती है,
और फिर “चाय और पकोडे”
इनका बारिसके साथ,कुछ
और ही आनंद है,
ये है”राहत भरी बरखा”!
“चिंता” के रूप मे बरखा
घर मे क़ैद कर देती है,
जिसका गम कई लोगो के
चेहरे पे साफ दिखता है,
और वो हर तरफ कीचड़
उफ़ ये बरखा ,अब बंद भी हो
जाओ ना,बहुत हो गया,
ये है“परेशान” करती बरखा“!
“भय” के रूप मे बरखा
आँखे आस्मा पे टिकी रहती है
और रॉज बढ़ रहा जलस्तर
बेचैनीबड़ा देता है,मन मे हर पल
ख़तरे का अहसास,वो बेघऱ हो जाने
का डर,बरखा ऐसा गजब मत करना!
ये है”खोफ़नाक’बरखा!
“काल” के रूप मे बरखा
एक भयावह मंज़र ले कर आती है
और शुरू होता है तांडव
हर तरफ त्राहि–त्राहि,हर
तरफ चीख –पूकार,सब
कुछ तहश–नहश
,पानी से डर लगता है,और एक ही प्राथना
प्रभु रहम करो,रोक दो इस विनाश को,
नही चाहिए कभी बरखा,
ये है“दैत्यरूपी” बरखा!
जिस तरह जिंदगी खुशी
और गम लिए आती है
उसी तरह बरखा भीकई
रूपो मैं आती है!
डॉक्टर राजीव श्रीवास्तवा
duplicate post.
@CS_Aithani,
was unable to post it on sept contest previously .,so had posted it on main page also.
Anyways how is it .keep sending yours valuable comments
thanks
ये Duplicate posting है. कृपया इसे delete कर दीजिये.
@Vishvnand,
was unable to post it on sept contest previously .,so had posted it on main page also.
Anyways how is it .keep sending yours valuable comments
thanks
@rajivsrivastava
Thanks. Now I understand.
You have deleted your earlier posting where I had given comments on this nice poem.
The poem is indeed well written with enlightening idea and mood.
However there are some obvious mistakes in some words as they presently appear in the poem like ” मैं ” for मे, शुकून, बारिस and some others which kindly do review carefully, to edit & correct .
सर है बहुत अच्छी……….
पर ये सब लोग दुप्लिकाते क्यों कह rahe hain……
@ANUJ SRIVASTAVA,
Thanks a lot
bahut achchhi kavita bas do shabd galat spelling ke kaaran khale
1- nijaad-sahi shabd hai nizaat,
2-shukoon, sahi shabd hai sukoon
@siddhanathsingh,
thanks a lot
Iam still learning hindi typing.anyways with yours support Iwill learn it fast.correction done.Thanks
Keep writing,Rajiv.
जैसे ज़िंदगी के कई पहलू वैसे ही वर्षा के, सुन्दर चित्रण !
thanks parminder