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बरखा!
Hindi Poetry, Sep 2010 Contest |
छलनी-छलनी हो गया आकाश मेरा
सपनो की धारा भी बह चली
बंद आँखें भी उफनती जा रही है
लगता है
मेरे मन के सूने आँगन में
आज झम-झम बरखा नाच रही है!
nicely written
Few Words are sufficient to describe your “MANODASHA”.
beauty
veryy nicely expressed 🙂
मन के बादल ही तो कभी मोर नचाते हैं और कभी अश्रुधारा, संक्षिप्त और सुन्दर!