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बारिश ने बेघर कर डाला

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Hindi Poetry, Sep 2010 Contest

बारिश ने बेघर कर डाला

जल थल गाँव डगर कर डाला.

 

टूट गया तटबंध नदी का

क्या कीजे स्वच्छंद नदी का.

वही तृप्त जो बना योजना
लूट गए आनंद नदी का

 

क्षुद्र स्वार्थ ने अभियंता की

मति पर मन भर पत्थर डाला.

 

सड़क फफोलेदार गयी हो

गड्ढों की भरमार गयी हो

पूछे  कौन  उन्हें  जो बोले

हाईवे  तैयार  गयी हो.

कहाँ गया सब  माल  मसाला

किधर  बताओ  डामर  डाला.

 

सीवर  सारे  चोक गए हो

मैन  होल  उफनाये  सारे

नालों  में  बस्तियां  बसी  हैं

नित  डरवाते   बादल  कारे ,

सड़क भरी  घुटनों  पानी  से

चलना  तक  दूभर  कर  डाला.

 

बिजली  तलवारों  सी   कडकी

घर  की बिजली  डर  कर भागी

उमस  घोंटती  दम  घबरा कर 

घरनी  घर   तज   बाहर  भागी .

वर्षा  रुत का रूमानीपन

किसने  ज़हर  ज़हर  कर डाला.

 

10 Comments

  1. Vishvnand says:

    रचना अर्थपूर्ण मनभायी
    आजकल की ये सच्चाई
    हार्दिक बधाई

    “वर्षा रुत का रूमानीपन
    किसने ज़हर ज़हर कर डाला”…. बहुत खूब बहुत सुन्दर अंतिम पंक्तियाँ .

  2. chandan says:

    बहुत अच्छी बहुत स्टीक गुरुवर.
    बस पहला अन्तरा एडिट कर दीजिए

  3. kishan says:

    har sabd main vajan dikhayi deta hain…..aap ko bahut abhinandan

  4. ANUJ SRIVASTAVA says:

    बहुत अच्छे शब्दों का प्रयोग है……

  5. Shreya says:

    Last stanza is the best. Bijli toh hamesha se hi dar ke bhag jaati hai, par kabhi is tarah se nahin socha. Brilliant imagination !!
    Aur haan, baarish ke mausam ki sadak ka फफोलेदार se achha description nahin ho sakta

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