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याद है…

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Crowned Poem, Hindi Poetry

याद है वो शाम जब

खुली खिडकी से मेरी

झांक रही थी बारिश

कि एक शर्मीली बूँद

जैसे मुस्करा पास बुला रही हो

तब तुमने हौले से उसे

उठा कर हथेली से

बिठा दिया था मेरे अधरों पर

जैसे भुझा रहे हों प्यास मेरी …

याद है उस सुबह बगियाँ

के उस गुलाबी फूल पे

बेठी थी एक सतरंगी तितली

जैसे बेताब हो सारा रस पी जाने को

तुमने धीमे से उसके पास दूसरा फूल ला दिया

जैसे कहने पे तुम्हारे आ जाती वह

तुम्हारी हँसती आँखों में

जो चमक व खुशी थी

जैसे कह रही हो, यही तो जीवन है …

याद है जब कई सीली दुपहरी बाद

निकली थी चमकीली

धुप एक दिन

जैसे तत्पर हो चमकाने को

धरती का एक-एक कोना

तब तुमने एक

किरण चुरा कर वहाँ से

भर दी थी मेरी सीली आँखों में

जैसे देखना चाहते हो चमकता मेरे मन को ….

याद है वह शाम जब

देख चियारिया का घोंसला एक

शरारत उभरी थी मन में

लपक कर भर लिया था तब

तुमने अपनी बाँहों में

जैसे कह रहे हों यहीं है

खुशियाँ सारी जो

कर देंगी हर मुश्किल से

आज़ाद मुझे और निभाएंगी साथ मेरा

हमेशा ………. हमेशा…………….   !!!

~१८/०९/२०१०~

13 Comments

  1. rajivsrivastava says:

    excellent—-congrats

  2. Parespeare says:

    a beautiful poem, Parul

  3. Vishvnand says:

    बहुत सुन्दर और मनभावन
    सुनहरी यादों का चयन
    पढ़कर कर दे ह्रदय प्रसन्न
    रचना के लिए हार्दिक अभिनन्दन

  4. dr.paliwal says:

    Vah ! Bahut sundar shabdon se piroyi manbhavan Rachna……
    Maja aa gaya padhkar…..

  5. prachi sandeep singla says:

    beautiful 🙂

  6. U.M.Sahai says:

    अति सुंदर कविता, पारुल , बधाई, पर कुछ शब्दों को सही करना होगा, जैसे: भुझा, बेठी, धुप और चियारिया की जगह क्रमशः बुझा, बैठी, धूप और चिरिया या चिड़िया होना चाहिए था.

  7. neeraj guru says:

    काव्य का सौन्दर्य लिए,प्रेम की काव्यमय अभिव्यक्ति.होले-होले से बहुत कुछ आ गया है इस कविता में.

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