« तुम ही कह दो कि क्या किया जाये. | ~~मुझे चार कंधोने उठाया था,उसे पता ना चला, » |
रात पूनों की है आज भी, आज भी हम अकेले बहुत.
Hindi Poetry |
रात पूनों की है आज भी, आज भी हम अकेले बहुत.
टूट जाएँ न अब हौसले, कर्ब फुरक़त के झेले बहुत.. (कर्ब-यातना, कष्ट. फुरक़त-वियोग )
गर्म शीशा पिघल यूँ हुआ है ज़मीर आतिशे हाल से,
हम भी आखिर लचीले हुए, झेल झगडे झमेले बहुत.
क्या हुआ, बज़्म खामोश है, हर शमा क़द्रे बेनूर है,
क़हक़हे गूंजते थे यहाँ, रौशनी के थे रेले बहुत.
एक न इक दिन सिमट जाती हैं, रौनकें और रंगीनियाँ,
आज ही की न ये बात है, हमने देखे हैं मेले बहुत.
रोज़ जीतें ही ये कब हुआ, मात भी है कभी लाजिमी,
क्यों न वाकिफ हकीकत से तुम, खेल तो तुमने खेले बहुत.
कामयाबी मयस्सर हुई भी तो अक्सर अधूरी हुई,
मेरी तकदीर सदके तेरे, हमने पापड तो बेले बहुत.
इस दर्द को सहना-भुलाना काश कोई जान ले,
बहुत अच्छे सर !!!
@Harish Chandra Lohumi, dhanyvad harish ji hardik aabhar.
बहुत खूब एस. एन. मज़ा आ गया , बधाई.
@U.M.Sahai, shukriya Sir, bahut dino ke baad idhar hain aaye aap intezar me kitne ham hairan hue.
Very nice sir..! your every poem give me a lot of thing to educate myself, improve further..! Thanks & Congrats for all your posting..! Keep it up..!
कामयाबी मयस्सर हुई भी तो अक्सर अधूरी हुई,
मेरी तकदीर सदके तेरे, हमने पापड तो बेले बहुत.
बहुत सुंदर सिंह साहिब, यूँ पूरी रचना अपने आप में खूबसूरत है पर अंतिम पंक्तियाँ बहुत पसंद आईं – हार्दिक बधाई