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रात पूनों की है आज भी, आज भी हम अकेले बहुत.

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Hindi Poetry
रात पूनों की है आज भी, आज भी हम अकेले बहुत.
टूट जाएँ न अब हौसले, कर्ब फुरक़त के झेले बहुत..      (कर्ब-यातना, कष्ट. फुरक़त-वियोग )
 
गर्म शीशा पिघल यूँ हुआ है ज़मीर आतिशे हाल से,
हम भी आखिर लचीले हुए, झेल झगडे झमेले बहुत.
 
क्या हुआ, बज़्म खामोश है, हर शमा क़द्रे बेनूर है,
क़हक़हे गूंजते थे यहाँ, रौशनी के थे रेले बहुत.
 
एक न इक दिन सिमट जाती हैं, रौनकें और रंगीनियाँ,
आज ही की न ये बात है, हमने देखे हैं मेले बहुत.
 
रोज़ जीतें ही ये कब हुआ, मात भी है कभी लाजिमी,
क्यों न वाकिफ हकीकत से तुम, खेल तो तुमने खेले बहुत.
 
कामयाबी मयस्सर हुई भी तो अक्सर अधूरी हुई,
मेरी तकदीर सदके तेरे, हमने पापड तो बेले बहुत.

6 Comments

  1. Harish Chandra Lohumi says:

    इस दर्द को सहना-भुलाना काश कोई जान ले,

    बहुत अच्छे सर !!!

  2. U.M.Sahai says:

    बहुत खूब एस. एन. मज़ा आ गया , बधाई.

  3. amit478874 says:

    Very nice sir..! your every poem give me a lot of thing to educate myself, improve further..! Thanks & Congrats for all your posting..! Keep it up..!

  4. sushil sarna says:

    कामयाबी मयस्सर हुई भी तो अक्सर अधूरी हुई,
    मेरी तकदीर सदके तेरे, हमने पापड तो बेले बहुत.
    बहुत सुंदर सिंह साहिब, यूँ पूरी रचना अपने आप में खूबसूरत है पर अंतिम पंक्तियाँ बहुत पसंद आईं – हार्दिक बधाई

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