सावन आया, बिरहा गाया ।
झूले पड़ गए, तन-मन भिड गए।
बदरा कारे, नयना हारे,
कोमल सा अहसास तेरा,
मेरा मन था स्वीकारे ।
बरखा संग मिल आयी बयार,
हे!!! इन्द्र तुम्हारी जय-जयकार ।
सिन्दूरी शाम, सजना तेरे नाम ।
नभ तारे बिन, दिन काटूँ गिन-गिन ।
हरियाली है, तुम बिन यह जीवन खाली है ।
कोयल बोले, मनवा डोले ।
भंवरे गाएँ, आँखें मोती बरसायें ।
झरने फूटे, तुम क्यों रूठे ?
जो सपने देखे, सब निकले झूठे ।
कोलाहल है, क्या कोई हल है ?
था प्यार तुम्हारा, या कोई छल है ?
अब याद तुम्हारी आती हर पल है,
मिल जाओ फिर से, जैसे नदिया में जल है ।
सुन्दर गीत,
मधुर, गहन भावनाओं से परिपूर्ण
ह्रदय झुलावे मनभावन
रचना के लिए हार्दिक बधाई
और p4poetry पर आपका हार्दिक स्वागत .
अपने बारे में अपने profile पर जरूर कुछ और भी बताएं ये आशा है ..
Your poem is one which remembers us the past that we enjoyed.
Good Initiation in this field. Explore it……
Thanks a Lot !!!! sir for these nice Comments
geet achchha laga, svar ki darkar hai.
Thank you……..
“कोयल बोले, मनवा डोले” की जगह “पपीहा बोले, मनवा डोले” हो जाये तो कैसा रहेगा ???
Bahut hee achha rahega Harish Ji
बहुत ही सुंदर गीत है \बधाई
Thank you Madam
वाह , गीत पढ़कर मज़ा आ गया! सुन्दर रंग हैं सब!
Thank you Parminder Ji…..