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वर्षा-ऋतु – ( बरखा और मैं )

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Sep 2010 Contest
सावन आया,  बिरहा गाया ।
झूले पड़ गए, तन-मन भिड गए।
 
बदरा कारे, नयना हारे,
कोमल सा अहसास तेरा,
मेरा मन था स्वीकारे ।
 
बरखा संग मिल आयी बयार,
हे!!! इन्द्र तुम्हारी जय-जयकार ।
 
सिन्दूरी शाम,  सजना तेरे नाम ।
नभ तारे बिन,  दिन काटूँ गिन-गिन ।
 
हरियाली है, तुम बिन यह जीवन खाली है ।
कोयल बोले, मनवा डोले ।
भंवरे गाएँ, आँखें मोती बरसायें ।
 
झरने फूटे, तुम क्यों रूठे ?
जो सपने देखे, सब निकले झूठे ।

 

कोलाहल है, क्या कोई हल है ?
था प्यार तुम्हारा, या कोई छल है ?
अब याद तुम्हारी आती हर पल है,
मिल जाओ फिर से, जैसे नदिया में जल है ।

11 Comments

  1. Vishvnand says:

    सुन्दर गीत,
    मधुर, गहन भावनाओं से परिपूर्ण
    ह्रदय झुलावे मनभावन
    रचना के लिए हार्दिक बधाई
    और p4poetry पर आपका हार्दिक स्वागत .
    अपने बारे में अपने profile पर जरूर कुछ और भी बताएं ये आशा है ..

  2. Mavi Kapoor says:

    Your poem is one which remembers us the past that we enjoyed.
    Good Initiation in this field. Explore it……

  3. siddha nath singh says:

    geet achchha laga, svar ki darkar hai.

  4. Harish Chandra Lohumi says:

    “कोयल बोले, मनवा डोले” की जगह “पपीहा बोले, मनवा डोले” हो जाये तो कैसा रहेगा ???

  5. बहुत ही सुंदर गीत है \बधाई

  6. parminder says:

    वाह , गीत पढ़कर मज़ा आ गया! सुन्दर रंग हैं सब!

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