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वर्षा ऋतू
Hindi Poetry, Sep 2010 Contest |
न धरा थी ज़मीं पर ,न चाँद था फलक पर
उम्मीद थी इस बार भी आएगी वर्षा सजधज कर
बादल बार बार आये ,कभी गहरे तो कभी हलके रंग दिखाए
किन्तु बिरहनी वर्षा ! सूरज देखते ही छुप जाये
मन सुखा ,आँगन सुखा ,नदियाँ तालाब बन गयी
सावन बीता भादो बीत रहा, हे वर्षा अब आँखें तरस गयी
साल पिछले! तुमने तो किया था सोलह श्रींगार
खेत खलिहान सभी डूबे थे ,आई थी कैसी बाढ़
स्वांग तुम्हारा समझ न आये पर करते हैं मुनहार
बरस जाओ ,मत गुस्साओ करो थोडा ही श्रींगार
कैसी निष्ठुर हो !! बस बिजली चमकाती हो!
नींद में डूबी आँखों को भ्रमित कर जाती हो
बढ़ने लगी धरा की बेचैनी ,अब कलेजा भी फटने लगा
सुखा! गर्म हवाओं संग, इधर फिर भटकने लगा
उठो उठो हर्सुल्लास का वक्त आया !!
अम्बर भीगा ,पर्वत गीले, धरा नदियाँ भर गयी
छैल छबीली वर्षा रानी !कल रात फिर बरस गयी !!
nice one…
@ANUJ SRIVASTAVA,
thanku!!
बहुत सुन्दर और अति मनभावन
वर्षा सी ही मन मोहन बरसती हुई वर्षा पर यह कविता
सुन्दर इस रचना के लिए अभिनन्दन और हार्दिक शुक्रिया
@Vishvnand,
bohut bohut dhanyabaad aapka ,mai aapse bohut prerit hoti hu!!
निरंतर लिखती रहो
अच्छा प्रयास है
बधाई
@dr. ved vyathit,
dhanyabaad aapka
aap bohut achcha likhte hain mai bhi aapke tarah likhna chahti hu
kosis kar rahi hu ,parantu mujhe sahitya ki utni jaankari nahi hai
ye haiku kya hoti hai plz bataye??
Shabdo ko byakt karne ka apka anjaz muje bhut ascha laga. Shub Kamnayaein…………………
@Mavi Kapoor,
bohut bohut dhanyabaad aapka is protsahan k liye!!
fantastic poem yaat no1
thanx for reading and comments!!