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उजाले के लिबासों में तिमिर मगरूर मिलते हैं
Hindi Poetry |
उजाले के लिबासों में तिमिर मगरूर मिलते हैं
धुंएँ में चिमनियों के सब मिहिर बेनूर मिलते हैं.
बने भगवान फिरते हैं,गुरू का ज्ञान देते हैं,
वो इंसानी मसाईल से तो कोसों दूर मिलते हैं.
वो जिनके कंठ से हरदम शहद और दूध बहता है,
घड़े सोने के वो विष से मगर भरपूर मिलते हैं.
वही दिल हैं, वही हैं दास्तानें दिल लगाने की,
अज़ल से ता-अबद हरसू यही मजकूर मिलते हैं.
अगर भगवान् तू सच में निहायत शक्तिशाली है,
तो क्यों बन्दे तेरे मुफलिस, मलिन, मजबूर मिलते हैं.
कठौती में कहाँ गंगा, न गंगा है न मन चंगा,
सभी रैदास हैं मायूस, थक के चूर मिलते हैं.
जो हैं दरिया का दरिया ही पचाने पीने में माहिर,
बतौरे दरियादिल कैसे वही मशहूर मिलते हैं.
अजब हैं हाल मथुरा के, कन्हैया कांपते भय से,
गली कूचों में फिरते पूतना, चाणूर मिलते हैं.
वही पहले सा कौन अब भी विदुर की बात सुनता है,
शकुनि की शातिराना चाल के दस्तूर मिलते हैं.
nice 🙂
@prachi sandeep singla, thanks prachi
वाह क्या बात है एस एन साहब !!! बधाई !!!
फ़िर से चमन की इज्जत को लूटते दुशासन,
फ़िर आ गये जमी पर ललकार कर रहे हैं ,
क्यूँ छुप गये मुरारी, कहाँ भीम सो रहे है,
इन्सानियत के दुश्मन इन्सान हो रहे हैं ।
@Harish Chandra Lohumi, kya baat hai, maza aa gaya harish ji
Vah ! Kya baat hai…..
@dr.paliwal, inayat ka shukriya. Dr sahab.
एक बेहतरीन ग़ज़ल.
@neeraj guru, thanks neeraj ji.