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एक दिन….!
Hindi Poetry, Oct 2010 Contest |
तुम और मैं
खड़े मीलों पार
बीच है ना नाव और पतवार
अब कैसे कहे मन की बात
जानते है यह दोनों हमें है प्यार!
एक दिन….!
सच है, हमारे धर्म है अलग
फिर भी आँखों में है अपनी
प्यार की गहरी झलक
क्यूँ नाम तुम्हारा सुनके
चेहरा मेरा जाता चहक!
एक दिन….!
क्या वो दिन आएगा?
जब हम कर सकेंगे
एक दूसरे से वही बात
जब टूट जाएगी
बीच में खड़ी हर दीवार!
एक दिन….!
तुम तुम रहोगे
मैं मैं रहूंगी
समुन्दर पार
समेटे सपने सजे खुली आँख
बन जाएगी बिगडती सब बात!
एक दिन….!
जब तुम कह सकोगे मुझसे
की तुमसे है मुझे प्यार
बिना जिझक और डर
ऊचे पेड़ पर बनायेंगे
बसेरा अपना जहाँ खुशिया खड़ी द्वार!
एक दिन…शायद ऐसा होगा…हाँ, सब अच्चा होगा!
ek din…..zarur aayega wo din jab tutegi har ej rasm har ek deewar..do pyaar bhare dil milenge aur gayenge milke malhaar…….
bht hi pyari peshkash hai ye aapki rachna ji…yunhi likhte rahiye muskurate rahiye…….
रचना जी नमस्कार,
बड़ी ही अच्छी कविता लिखी है आपने एइसा लगा जैसे किसी कच्चे बाल मन से पके हुए विचारों की वर्षा हो रही हो | ढेर सारी बधाई |
kya baat hai aachi rachna
good one.
उस आने वाले एक दिन की सब उम्मीदें पूर्ण हों तो दिल मृग जैसे उछालें मारे, एक दिन , यही हम भी प्रार्थना करते हैं!
wish d same as parminder ji 🙂
Good One…
The theme i must say is the age old….how and when to propose. I like the contemplative style of writing it.