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वाह – यह विवाद!
Hindi Poetry |
ओशो ने गुरु नानक रचित जपजी साहिब की व्याख्या में बताया हर चीज़ विवाद से ही चलती है,
पढ़ते हुए कुछ विचार मन में आये, पता नहीं आप सहमत होंगे या नहीं…
द्वेष – कितना गुणी
द्वेष – कितना पराक्रमी
निरंतर चलती ज़िंदगी
उत्तेजना लाता यही डाह!
कल-कल-कल में है विवाद
नदी और छोर कर रहे प्रतिवाद,
सर-सर-सर में है जो स्पंदन
हवा पत्तों में हो रहा है खंडन ,
स-रे-ग-म-प में भी जो नाद
वीणा को उंगलियाँ रहीं ललकार,
समस्त सृष्टि में फैलता उन्माद
उपजाने वाला बस, यही, विवाद!!
शान्त रस । वाह ! कैसा यह विवाद !
परमिन्द्र जी बधाई
संत तुलसीदास ने भी लिखा है की जाकी रही भावना जैसी ,प्रभु मूर्त देखी तिन तैसी
अर्थार्त यह तो व्यक्ति की सोच है
वाद हो या प्रतिवाद
मनभाया बहुत ये अंदाज़
सुन्दर रचना और संवाद
मन बोल उठा निर्विवाद ….
रचना बधाई और प्रशंसा के पात्र
हरीश जी, वेद जी एवं विश्व जी, आप सब के उत्साह वर्धक शब्दों की बहुत आभारी हूँ|
bohut achchi lagi !!