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एक हसीन शाम…

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Hindi Poetry

कल शाम को मै अपने मोटरसायकल पर किसी बस स्टॉप से गुज़र रहा था तो उस बस स्टॉप पर एक बहुत ही ख़ूबसूरत लड़की को देखा.! कह दो जैसे वो चाँद का टुकड़ा ही हो…! देख कर उसे मेरे मन में कुछ खयालात आये और सोचने लगा – “कैसा हो अगर मै उनके पास जा कर प्यार की दो चार मीठी बातें करू, मेरे कवि मन का एक परचा करा कर उसे “इम्प्रेस” करने की कोशिश करू??”
शायद कुछ ऐसा मनोरंजन हो..!

आप हमें जानते नहीं,
पर हम आप को जानते है…!

आप हमें पहचानते नहीं,
पर हम आप को पहचानते है…!

आप रोज़ इस बस स्टॉप पर आती है,
और यहाँ से १० नंबर की बस से जाती है…!

हम भी आप की बस के पीछे-पीछे,
अपनी मोटर-सायकिल ले कर आते है…!

हम आज “इकरार” करते है,
अपने प्यार का “इज़हार” करते है…!

सुन कर इतना,
बिच में ही हमें रोक कर के वो बोली,
“चल बे-झूठे…मै तो आज पहली बार
इस बस से जा रही हूँ…!
न जाने ये “आवारा” – “पागल”,
कहाँ कहाँ से आ जाते है…!?”

– अमित टी. शाह (M.A.S.)
19th November 2010

4 Comments

  1. rajiv srivastava says:

    aapki dardnaak story sun kar bura laga—koi aur jumla try kigiyega next time—refreshing one good

  2. Harish Chandra Lohumi says:

    अच्छा गुदगुदाया अमित जी ! बधाई !!!

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