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***चिरागों से पूछिये….***

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Hindi Poetry

 

होता है इन्तजार क्या चिरागों से पूछिये
खुद को मिटा दिया   इक अरमाँ के वास्ते 
 
अलसाई भोर की तरह चेहरा वो प्यार का 
बैचैन है वो शाम ढले  बाहों   के   वास्ते  
 
कोहरा  भी ढक न पाया  सूरत वो प्यार की
पहुंचे  करीब उनके हम निगाहों   के रास्ते
 
धड़का लबों पे नाम इक जाम की तरह
उलझे  रहे जवाब सब सवालों के रास्ते
 
बेवफाई का गिला आँखों के सावन से नहीं
सब राज दिल के बह गए पलकों  के रास्ते  
 
 
सुशील सरना
 

8 Comments

  1. dr.paliwal says:

    Vah! sirji,bahut khoob….. kya baat hai…..

  2. Harish Chandra Lohumi says:

    चिरागों से तो हम बाद में पूछ लेंगे सरना साहब !,
    पहले आप तो बताइये कहाँ छुपा कर रखा था इस खूबसूरत रचना को आज तक !!!

  3. kishan says:

    aap ki is rachna ko salam karta hun ..bahut khoob likha hai sir ..bus aap likhte rahiye hum padhte rahenge …….jai shree krishna

  4. pallawi says:

    liked it !!

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