होता है इन्तजार क्या चिरागों से पूछिये
खुद को मिटा दिया इक अरमाँ के वास्ते
अलसाई भोर की तरह चेहरा वो प्यार का
बैचैन है वो शाम ढले बाहों के वास्ते
कोहरा भी ढक न पाया सूरत वो प्यार की
पहुंचे करीब उनके हम निगाहों के रास्ते
धड़का लबों पे नाम इक जाम की तरह
उलझे रहे जवाब सब सवालों के रास्ते
बेवफाई का गिला आँखों के सावन से नहीं
सब राज दिल के बह गए पलकों के रास्ते
सुशील सरना
Vah! sirji,bahut khoob….. kya baat hai…..
@dr.paliwal,
Many Many Thanks Dr.Saahib for sweet appreciation.
चिरागों से तो हम बाद में पूछ लेंगे सरना साहब !,
पहले आप तो बताइये कहाँ छुपा कर रखा था इस खूबसूरत रचना को आज तक !!!
@Harish Chandra Lohumi,
इस मधुर प्रशंसा का हार्दिक शुक्रिया हरीश जी
aap ki is rachna ko salam karta hun ..bahut khoob likha hai sir ..bus aap likhte rahiye hum padhte rahenge …….jai shree krishna
@kishan,
Thanks, thanks and deep thanks from the bottom of my heart for this sweet comment Kishn jee-jai shri krishna
liked it !!
@pallawi,
thanks a lot Pallawi jee