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दूरियां
Hindi Poetry |
इस रंग रूप के मौसम में सब फीका-फीका लगता है
तुम दूर-दूर जो बैठे हो जग रूठा-रूठा लगता है
जब हाँथ पकड़ तुम चलते थे सब सतरंगी हो जाता था
अब साथ नहीं जो तुम मेरे सब फीका-फीका लगता है
जब याद तुम्हारी आती है मन मेरा भारी हो जाता है
कुछ याद नहीं रहता मुझको दिल टूटा-टूटा लगता है
जब तुम थे मेरे पास तो जैसे दुनिया मेरी मुट्ठी में
अब पास नहीं जो तुम मेरे सब छूटा-छूटा लगता है
जो तुम आजाओ पास मेरे दिल खिल जाये सब मिल जाये
ये सोच भी लेता हूँ तो सब कुछ पहले जैसा लगता है
इस रंग रूप के मौसम में सब फीका-फीका लगता है
तुम दूर-दूर जो बैठे हो जग रूठा-रूठा लगता है
मैंने इस गीत को गुनगुनाने की कोशिश की है | ये मेरा पहला प्रयोग है | आशा करता हूँ की ठीक ठाक लगेगा |
बहुत बढ़िया लिखा हे आपने | मुझे तीसरा और चौथा अन्तर अच्छा लगा | यूँही लिखते रहिये.. ढेर सारी बधाइयाँ |
@Abhi Tamrakar, अभी जी बहुत बहुत धन्यवाद |
बहुत मनभावन रचना
हार्दिक बधाई
पॉडकास्ट का प्रयास मनभाया.
प्रक्टिस से और भी बहुत सुधरेगा
गाने के लिए रचना में rhythm भी natural है
लगता है तीसरी लाइन में ” कुछ ” की जरूरत नही है .जो लय affect करता है
@Vishvnand, धन्यवाद विश्वनंद जी |
“कुछ” हटाने से सच में लय में सुधर हुआ है | आप का ऐसे ही आर्शीवाद मिलता रहा तो लिखता रहूँगा |
Rachna Bahut hee achchi hai
@nitin_shukla14, शुक्रिया आपका |
Very nice and well written.
@Dhirendra Misra, Thank you very much.
यह गीत और ग़ज़ल का मिला जुला रूप है प्रयास अच्छा है.विश्वनान्दजी से मैं सहमत हूँ कि अभी आपको और अभ्यास चाहिए.
@neeraj guru, धन्यवाद नीरज जी | मैंने “कुछ” हटा दिया है, सुझाव के लिए आभार | और हाँ अभ्यास जारी रखूँगा |
सुन्दर रचना है, podcast का प्रयास भी अच्छा है|
जब हाँथ पकड़ तुम चलते थे सब सतरंगी हो जाता था
इस लाइन में ‘कुछ’ निकालने से कुछ rhythm ठीक लगे तो edit कर दें, गलत हो तो माफी चाहती हूँ|
@parminder, परमिंदर जी सुझाव के लिए धन्यवाद | “कुछ” हटा दिया है मैंने, बहुत बहुत शुक्रिया | ऐसे ही मार्ग दर्शन करते रहे|
i liked d lyrics 🙂