« »

अब बचपना छोड़ ना.

2 votes, average: 4.50 out of 52 votes, average: 4.50 out of 52 votes, average: 4.50 out of 52 votes, average: 4.50 out of 52 votes, average: 4.50 out of 5
Loading...
Hindi Poetry

रूठ जाना तेरा मुझ से बात करना छोड़ना,

छोड़ दे आदत पुरानी अब बचपना छोड़ ना.

 

दो गये दो रह गए दिन चार की थी ज़िंदग़ी,

यूँ भरोसा एक पल का है कहाँ, दिल तोड़ ना.

 

ग़ैरों के सुख दुख में न शामिल हो   मैंने कब कहा,

वक़्त अपने भी लिए जानां जरा सा छोड़ना.

 

लद गए दिन ख़त-क़िताबत के ज़माना है नया,

मैं मनाऊँगा तुम्हें ज़रा आई डी अपनी बोलना.

 

ए जी बिका कितने में जी लेना हमे है इससे क्या,

अपने लिए पैग़ाम मोहब्बत के फ़क़त अनमोल ना.

 

यूँ तो चेहरे पर लक़ीरें उम्र की छिपती नहीं,

फिर भी मूंछों के लिए थोड़ी सी मेहंदी घोल ना,

 

वो तिरे जैसा था कोई या सनम तू ही था वो,

भेद `चंदन’ भी है जाने तू भी तो कुछ बोल ना.

                                                      – चंदन

4 Comments

  1. U.M.Sahai says:

    बहुत खूब चन्दन जी, मज़ा आ गया. बधाई.

  2. Vishvnand says:

    vaah, manbhaavan lagii aapke kahane kii har baat
    ab kaun n maanegaa aapkii aisee kahii baat
    Sundar rachanaa, Hardik badhaaii

    • chandan says:

      सर. हार्दिक धन्यवाद आपका आशिवाद मिलता रहता है. कोशिश करता हूं अच्छा रचने की.पर कम लिखने की सज़ा मिलती है भाई लोग पढ़्ते भी कम हैं

Leave a Reply