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“बाल-लीला”
Hindi Poetry |
“बाल-लीला”
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कलाई कोमल-कोमल, श्यामल-श्यामल सौम्य-स्वरूप,
कान्हा करत किलोल, राधिका रास रचावे अनूप !
माखन-मंथन मात यशोदा करत रहत भरपूर,
झाँकत रहत कन्हैया जब तक मात होत नहिं दूर !
मैया जब हो गई दूर, कर मंथन का पूरा काम,
लपक पड़े माखन खाने को लालायित घनश्याम !
पूर्ण तुष्ट होकर भागे लालन जो देवकीनंदन,
मुख माखन-मंडित था उनका अनूठा महिमा-मंडन !
ऐसी बाल-लीला का नभचर देवों ने पाया दर्शन,
तीनों लोकों में हुआ प्रसारित इसके प्रति आकर्षण !
देखके ये उद्दंडता भागती आई यशोदा मैया,
लिए दंडिका धावत पीछे, आगे भागे कन्हैया !
देख हांफती मैया को पकड़ में आत घनश्याम,
रज्जू से बाँध उन्हैं मैया अब लगी दूसरे काम !
तनिक देर होते ही यशोदा विचलित हुई अधीर,
खोल के बंधन लगी चूमने लालन को हो गंभीर !
पुष्प-वृष्टि हुई तब नभ से, देवों ने किया नमन,
ऐसी लीला के दर्शनार्थ मचलता बारबार ये मन !
जय श्री कृष्ण, जय श्री कृष्ण, जय जय श्याम, जय घनश्याम !
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कलाई कोमल-कोमल, श्यामल-श्यामल सौम्य-स्वरूप,
कान्हा करत किलोल, राधिका रास रचावे अनूप !
माखन-मंथन मात यशोदा करत रहत भरपूर,
झाँकत रहत कन्हैया जब तक मात होत नहिं दूर !
मैया जब हो गई दूर, कर मंथन का पूरा काम,
लपक पड़े माखन खाने को लालायित घनश्याम !
पूर्ण तुष्ट होकर भागे लालन जो देवकीनंदन,
मुख माखन-मंडित था उनका अनूठा महिमा-मंडन !
ऐसी बाल-लीला का नभचर देवों ने पाया दर्शन,
तीनों लोकों में हुआ प्रसारित इसके प्रति आकर्षण !
देखके ये उद्दंडता भागती आई यशोदा मैया,
लिए दंडिका धावत पीछे, आगे भागे कन्हैया !
देख हांफती मैया को पकड़ में आत घनश्याम,
रज्जू से बाँध उन्हैं मैया अब लगी दूसरे काम !
तनिक देर होते ही यशोदा विचलित हुई अधीर,
खोल के बंधन लगी चूमने लालन को हो गंभीर !
पुष्प-वृष्टि हुई तब नभ से, देवों ने किया नमन,
ऐसी लीला के दर्शनार्थ मचलता बारबार ये मन !
जय श्री कृष्ण, जय श्री कृष्ण, जय जय श्याम, जय घनश्याम !
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कान्हा करत किलोल, राधिका रास रचावे अनूप
BADHAI SIR achhi rachna..jai shree krishna
@kishan, बहुत बहुत आभार एवं हार्दिक
धन्यवाद, प्रिय किशन !
अति सुन्दर मनमोहक भाव और शब्दों की उत्कृष्ट रचना
रचना पढ़ साक्षात हुए दर्शन बालकृष्ण और मैया यशोदा के
चाहूँ करता रहूँ प्रशंसा इस सुन्दर लेखनी के
रचना के लिए हार्दिक अभिनन्दन और अभिवादन
5 stars the least
@Vishvnand, अत्यंत हार्दिक धन्यवाद !
यह सब आप के ही प्रेरणादायक प्रोत्साहन की देन है !
बहुत ही सुन्दर वर्णन कान्ह के बाल रूप का .
वर्ष २०१० के विदाई की इस बेला में आपने हिंदी काव्य के दसवें रस (वात्सल्य रस) की मनमोहक मनमोहक प्रस्तुति से भाव-विभोर कर दिया सर .
हार्दिक बधाई और नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ !
@Harish Chandra Lohumi, Many a
thank, Dear H.C. !
श्रीमान इस रचना नए भावविभोर कर दिया…
बधाइयाँ
@Sinner, Grateful thanks, Dear
Sinner.
Deserves *****5 stars**** the least.
@Harish Chandra Lohumi, Grateful
thanks, a tankful of thanks !
vah..khubsurat..kanheyaa ..
@dp, GRATEFUL THANKS AND HNY.
बहुत ही मनभावन, कृष्ण लीला का सजीव चित्रण…
मानस-पटल पर सुन्दर चित्र अंकित करती रचना… 🙂
दादू, आपको बहुत-बहुत बधाई, 5 ***** सहित…
@P4PoetryP4Praveen,सप्रेम, साभार
धन्यवाद ! इस कविता को आपकी माताजी को भी सुनाएं और ऐसी
ही ब्रज भाषा में मेरी निम्नांकित अन्य कवितायेँ भी पढ़ें और सुनाएं:-
“कृष्ण-कथा-झंकृत झांकी”, “कृष्ण-कंस-विकट विध्वंस”, “महाभारत-मंथन”
इत्यादि !