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वह तपिश …
Hindi Poetry |
वह तपिश,
जो तुम्हारे अरमानो से निकलकर,
मेरे माथे की सपाट लकीरों तक पहुँच रही है,
शायद इन हांथो की लकीरों को बदलने की एक कोशिश है,
या फिर
तुम मुझे मेरे उत्तरदायित्वों की भाषाए सिखा रही हो
जिन्हें मै कभी सीखना ही नहीं चाहता था,
कुछ भी हो,
पर बदलाव की इन लहरों के साथ बहने का अलग ही आनंद है ||
a different and meaningful approach vijay 🙂 उत्तर्दायित्यो की जगह ”उत्तरदायित्वों” आना चाहिए and तपिष shud be ”तपिश”,,बस
… keep sharing