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“आख़िर क्यूँ?”
Hindi Poetry |
बन जाता है क्यूँ वो ही आख़िरी साँस की वजह?
लेकर जिसका नाम चहक उठते थे हम,
क्यूँ वो ही नाम फाँस चुभो जाता है मन में?
जिससे किये जाते हैं हम निस्वार्थ प्रेम,
क्यूँ वही अपने स्वार्थ को सिद्ध करना चाहता है?
ख़ून के रिश्ते ही क्यूँ ख़ून कर देना चाहते हैं रिश्तों का?
क्या ज़िन्दगी से भी बढ़कर मौत हो सकती है कभी?
क्यूँ आकाश स्थिर रहता है ये सब अनहोनी देखकर?
क्यूँ धरा हमें नहीं समो लेती अपनी बाँहों में माँ सीता की तरह?
प्रयास क्यूँ व्यर्थ हो जाते हैं, किसी अपने को मनाने के?
कयास क्यूँ सच हो जाते हैं ग़ैरों के लगाये हुए?
बेलगाम ज़िंदगी की डोर अगर कोई थामता हो,
जिसे सब कहते हैं ईश्वर, अल्लाह, रब…
अगर है कहीं तो क्यूँ नहीं करता कुछ,
और किस बात के इंतज़ार में मंद-मंद मुस्कुरा रहा है वो?
आख़िर क्यूँ?
-प्रवीण
बेलगाम ज़िंदगी की डोर अगर कोई थामता हो,
जिसे सब कहते हैं ईश्वर, अल्लाह, रब…
अगर है कहीं तो क्यूँ नहीं करता कुछ,
और किस बात के इंतज़ार में मंद-मंद मुस्कुरा रहा है वो?
-प्रवीण
sach kaha—bahut sunder badahai
@rajiv srivastava, बहुत-बहुत धन्यवाद आपका राजीव भाई… 🙂
अति सुन्दर मनभावन रचना
जिन्दगी का ही अलग सा दर्शन
प्रश्न कितने और कई, पर उत्तर नहीं
जिए जा रहें है भ्रमों में यूँही …
इस सुहानी रचना के लिए हार्दिक बधाई
@Vishvnand, शायद जब हम अपने ही किसी अनुभव को रचना का रूप देते हैं, तो ऐसे ही नतीजे सामने आते हैं…जैसे मेरी इस रचना पर आपने प्रतिक्रिया कर व्यक्त किये हैं दादा… 🙂
आपका आभारी हूँ… 🙂
प्रेम सहित,
प्रवीण
अतिसुन्दर – बधाई
किस्मत बिगड़ी दुनियां बदली कब कौन किसी का होता है
वो दिल को चोट लगाता है जो दिल को प्यारा होता है
@Swayam Prabha Misra, वाह क्या बात है…आपने तो मेरी रचना का भावार्थ ही लिख डाला…इस सुन्दर से भावार्थ एवं प्रशंसा के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया जी… 🙂
बहुत खूब प्रवीण जी 🙂
@Bhavana, तहेदिल से शुक्रिया आपका… 🙂