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आज फिर जश्न राहों ने मना लिया
Hindi Poetry |
आज फिर जश्न राहों ने मना लिया
किसी बड़ी ख़ुशी का बहाना भी क्या
मेरे लिए तो रु-ब-रु तू ही ख़ुशी है
गुज़रा तेरे साए से वर्ना यूँ आना भी क्या…
शुक्र है कि पलटा है रुख, मगर तुम नहीं
ये बढ़ना धीरे से कि चाँद शरमा गया
मेरी साँसों की आहट थी कितने तेरे करीब
ख़ामोशी मेरी तू है और ज़माना भी क्या…
मुस्कराहट थी कैसी मैंने देखी नहीं नज़र
रुक जाते क़दम तो शायद क़यामत होती
मैंने रोका है दिल को पा के दिल में तुम्हें
दिल से करती खबर यूँ खत थमाना भी क्या…
छुप के मिलना सनम यूँ खता हो गई
हर शराफत हमारी तुमसे घबराने को है
बात जायज़ है क्यूँ मेरा तसव्वुर हो तुम्हें
प्यार कतरा है तो आँखों से गिराना भी क्या…
गली है नम उभरा हुआ बादल बताता है
अश्क सूखे सही पर तुम्हें राहें दी हैं
भूल जाओगे कोशिश करो याद करके मुझे
मेरी शिद्दत को सीने में छुपाना भी क्या…
बहुत अच्छे रीतेश जी ! रचना अच्छी लगी । इन पंक्तियों में कुछ सुधार की गुंजाइश है शायद !
“शुक्र है की पलता है रुख मगर तुम नहीं
ये बढ़ना धीरे से की चाँद शर्मा गया”
हरीश जी..रचना पसंद आई आपको ये जान के हर्ष हुआ…साथ ही इस पंक्ति पर विशेष उल्लेख करके त्रुटी पर ध्यान दिलाने के लिए आभार.
‘पलटा’ लिख रहा था ‘पलता’ हो गया..तो उसे ‘पलट’ दिया है मैंने 😉
इसके इलावा क्या इन पक्तियों का अर्थ स्पष्ट नहीं हो रहा..कृपया पुनः बताइये और सुधार सुझाइए.
@Reetesh Sabr, “चाँद शर्मा” जी भी कुछ शरमाना चाह रहें शायद . 😉
सर यहाँ समझा नहीं..सुधारना कहाँ है? कृपया, बेधड़क सुझाइए…कमसिन रचना के लिए अच्छा है की दो-तीन चपत लगा दिए जाएँ बुजुर्गों द्वारा 😉
@Reetesh Sabr,
शायद …
शुक्र है की पलटा है रुख, मगर तुम नहीं
ये बढ़ना धीरे से कि की चाँद शरमा गया.
….होना चाहिए . बुजुर्ग होने के नाते लिख रहा हूँ आशा करता हूँ अन्यथा नहीं लेंगे . 🙂
@Reetesh Sabr, शायद …
शुक्र है की पलटा है रुख, मगर तुम नहीं
ये बढ़ना धीरे से कि चाँद शरमा गया.
….होना चाहिए . बुजुर्ग होने के नाते लिख रहा हूँ आशा करता हूँ अन्यथा नहीं लेंगे . 🙂
सर बहुत बहुत बहुत धन्यवाद…समझ तो हम गए थे की आपका इशारा ‘शर्मा’ की तरफ है..हमारे एक और बुज़ुर्ग हैं, जिनसे बातचीत करके हमें पूरा यक़ीन हो गया की आप ने एकदम सटीक मशवरा दिया..तो लीजिये हमने गलती सुधार दी..मुआफी चाहते हैं सुबह से आपको परेशान कर रहे हैं एक ज़रा अदनी सी बात के लिए…
वाह वाह
बहुत खूब रचना मज़ा आ गया
लाज़वाब इसमे अंदाज़ -ए – बयाँ भी क्या …
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