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आज हम करें…!
Hindi Poetry |
आज कविता के रस में अचानक रंग रहा है मन,
26 जनवरी पर लिखने का भी बहुत हो रहा है मन,
मैंने जैसे उठाई कलम तो लेट गया पेपर का तन-मन,
और मैं भी जोश से लेखन में हो गई मगन।।
चलो, देश के संविधान का अवलोकन आज हम करें,
समानता और स्वतंत्रता के पैमानों का अध्ययन हम करें,
जागरूकता और सर्तकता के आंकडों का जायजा हम करें,
उजड़ती, तार-तार होती देश की चादर की सिलाई हम करें।
ढकोसला नहीं चाहती देश के गणतंत्र दिवस को लेकर मैं,
साक्षर होते देश में अनपढ़ की गिनती है बहुत, क्या यह भी बताऊँ मैं,
देश में बदल रहा है विकास और विकास का पैमाना, क्या ये समझाऊँ मैं,
कहना तो बहुत है पर कैसे साफ-साफ कहूं समझ नहीं पा रही हूं मैं।।
खैर, 26 जनवरी पर विशेष पर क्या खास हो, मैं आपको बताती हूं,
देश में भूखा ना हो कोई, ना कोई इससे मरे यही अरदास लगाती हू,
सोच की गहराई से देश का विकास और प्रगति का सपना सजाती हूं,
दिल चाहता है देश स्वस्थ रहे, मैं उसे बीमार नहीं देखना चाहती हूं।।
पर मेरे बस सोचने और कहने से यह स्थिति नहीं बदल पाएगी,
सोच को साफ कर लें, पर क्या भ्रष्टाचार की गंदगी साफ हो पाएगी,
क्या विकसित होते देश में गरीबों की आर्थिक तरक्की हो पाएगी,
अगर ये सवाल मैं सरकार से करूं, तो क्या वह जवाब दे पाएगी??
वाह अन्जू जी ! बहुत ही अच्छी रचना ! देश को झकझोरने वाले काश ! इसे समझ पाते ! आपका सोचना देश हित में है ! गणतंत्र दिवस पर एक अच्छा प्रयास अपनी बात सामने रखने का ! बधाई !
(तीसरी पन्क्ति का चौथा शब्द राजनीति से प्रेरित लग रहा है 🙂 …बुरा न मानियेगा एकाध और शब्द गलत छप गये हैं “सपना साजती हूं”। ये टाइपिंग की त्रुटि है अक्सर हो जाया करती है।)
@Harish Chandra Lohumi, तृतीय पंक्ति में संभवतः “कलम” ही होगा…जो कि “कमल” बन गया है…कृपया सुधार लें…अन्यथा यह रचना आपको ज़बरदस्ती कथित राजनैतिक पार्टी ज्वाइन करवा देगी…
“बताऊ, समझाऊ” को भी “बताऊँ, समझाऊँ” कर लें…और अंजू जी चौथा पैराग्राफ अगर डिलीट कर दें तो रचना और भी अच्छी हो जाएगी…क्यूंकि उसमें सिर्फ़ संदेह और ग़लत सन्देश जाता है…
बाक़ी वाकई आपने बहुत अच्छा प्रयास किया है…एक ज़िम्मेदार नागरिक होने का फ़र्ज़ अदा किया है…
बधाई… 🙂
@P4PoetryP4Praveen,
सर जी आप का सुझाव मुझे समझ आ गया है और मैंने अपनी गलती को भी सुधार लिया है …इतना सुलझा और सार्थक सुझाव देने के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद
..
पर जहाँ बात पैराग्राफ हटाने की है वह नहीं हटा सकती हूँ.. क्यूंकि जो विचारक सकारात्मक सोच के साथ इस गंभीर मुद्दे को देखते है उनको मेरी यह रचना इस पैरा की वजह से मेरी सकारात्मक सोच लगेगी, क्यूंकि मुझे उनकी भावनाओं को ठेस लगाने का भी बुरा लगेगा… वैसे ऊपर मैंने जो लिखा था मुझे लगा की किसी की भी देश भक्ति भावना को ठेस न लगे…और उसी संदेह के साथ वो लाइन लिखी है…
वैसे मुझे ख़ुशी है मेरी रचना का मूल मकसद आप तक गया है तभी तो आप ने मुझे यह पैरा हटाने का सुझाव दिया है.. वैसे वाकई एक बात और आज मैंने छोटी छोटी काफी गलती की है.. उन्हें बताने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आप का.
@anju singh, ठीक है, जैसी आपकी मर्ज़ी…अब जब आपने ये पैराग्राफ रखने का निर्णय लिया है तो इस पैराग्राफ की भी मामूली ग़लतियों को सुधार लीजिये…
तृतीय पंक्ति में “अंगडाई” को “अंगड़ाई” कर लें…और चौथी पंक्ति में “कर कर” का रिपीटेशन है, सुधार लें…और “डर हैं” को “डर है” कर लें…
(वैसे मेरा सुझाव आपकी रचना की लम्बाई से पड़ रहे नकारात्मक प्रभाव को दूर करना था…और इस पैराग्राफ में हाथापाई की बात है…आपसे भला कोई क्यूँ हाथापाई करेगा? और आपने अपने मन से ही अपनी रचना को क्यूँ विरोध-संदेह में डाल लिया? मुझे तो नहीं लगता कि किसी भी भारतीय को ऐसा लगेगा?)
रचना के दूसरे पैराग्राफ में तीसरी पंक्ति में “सर्तकता” को “सतर्कता” कर लें…”आंकडों” को “आंकड़ों” कर लें…
@P4PoetryP4Praveen,
नमस्कार सर जी,
ठीक है सर आप के इस सुझाव के अनुसार. यह पैराग्राफ हटा रही हूँ… और माफ़ी चाहती हूँ इतनी गलतियों वाली रचना के लिए…
बात जहा हाथापाई की थी.. जरुरी नहीं वैसा ही हो. मगर संदेह से रचना पर सवाल करना भी तो हाथापाई है…खैर अपने कीमती सुझाव देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आप का…मैं आप की आभारी हूँ…अगर मैंने आप से कोई कटु शब्द बोल दिए हो तो माफ़ी चाहती हूँ…
@Harish Chandra Lohumi,
ji sir maine गलतियों को सुधार लिया है.. और कमेन्ट के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आप का..
आदरणीय अंजू जी
‘पर मेरे बस सोचने और कहने से यह स्थिति नहीं बदल पाएगी’
वाह, क्या खूब कहा आपने ,सभी को सोचना होगा तभी स्थिति बदल पायेगी
बधाई हो
संतोष
@santosh bhauwala,
जी बहुत बहुत धन्यवाद सर…
आदरणीय अन्जूजी
क्या खूब कहा आपने बधाई हो
संतोष ,
बहुत सुन्दर दिल को झकझोरती उत्स्फूर्त रचना
प्रशंसनीय अर्थपूर्ण कटाक्ष और प्रभावी
हार्दिक बधाई
विकास के नाम पर गरीबी बढ़ती जा रही है
नेता ही रिश्वतखोरी कर अमीर हो गए हैं
कुछ खा खा कर मर गए हैं और कुछ मरने की ओर तुले हैं
अपने प्रजातंत्र का ऐसा हाल हम भुगत रहे हैं
किसी दुष्ट आतंकवादी देशद्रोही या रिश्वतखोर नेता को सज़ा देने में असमर्थ हैं
हे गणतंत्र दिवस की आत्मा, देश में फिर अब इक बड़े सत्याग्रह की जरूरत आन पड़ी है …..
@Vishvnand,
जी सर जी नमस्कार ,
आजाद भारत की यह गुलामी वाली स्थिति दिखाते है…
तभी तो दिल और दिमाग दोनों ही हिल जाते है …
धन्यवाद सर जी ,, की आप को रचना भायी
आप ने तो देश की हर बाते को बड़े ध्यान से लिखी है
इस तरह आप तो देश और देश में रहने सभी के लिये
एक सबक है
@jitender kumar,
जी आप का बहुत बहुत शुक्रिया जीत जी ,
क्यों ठीक कहा न…मैंने
attiuttam–aise rachnao se hi is manch main mahak aati hai—badahai—–aise hi likhte rahiye
@rajiv srivastava,
bahut बहुत धन्यवाद सर …
liked it ma’am
@rajdeep bhattacharya,
थैंक्स सर..