« एक अदालत जो ऊपर है …..! | लोग अंदाज़ लिफाफों से लगाने वाले » |
इस्टेशन पर भीख मांगते भूखे बेबस बच्चे.
Hindi Poetry |
इस्टेशन पर भीख मांगते भूखे बेबस बच्चे.
आप फख्र से फरमाते हैं हाल शहर के अच्छे.
बोते बोते बीज बिदेसी देखें सपन सुनहले.
कीड़ामार दवा क्यूँ पीते कृषक फसल से पहले.
खेती गयी सड़क के नीचे भूमिहीन हो भटके
शूटर बने मुम्बई छानें छोरे गंगा तट के.
सूख गया पानी धरती का अंधे हुए इनारे.
बसे शहर आ होरी धनिया नाले गंद किनारे.
खींची खूब गरीबी की है किसने ऐसी रेखा.
अच्छे खाते पीतों को है इसके नीचे देखा.
जो खानाबदोश हो घूमें हैं रिकार्ड से बाहर
और सब्सिडी भोग रहे हैं धन्धेबाज़ धुरंधर.
सत्ता की साडी में लिपटी कपट नीति इठलाती
दल दल के दलदल में डूबी न्याय नियम की थाती.
गली गली में ड्रग मिलती है केवल दवा निठोहर,
पांच साल में फिर पूछेंगे कहाँ लगेगी मोहर.
सड़के सब फूटपाथ खा गयीं,हैराँ चलनेवारे.
बादशाह कारों में चलते पल पल प्यादे मारे.
लूट अपराध अपहरण बनते क्यों सत्ता की सीढी
क्यों ऐसे हालात बनी है मुलजिम सारी पीढी.
जनता का धन मिलीभगत से आये सारे खाने.
स्वयंसेवकों की सेवा से जनता लगी ठिकाने.
जन्म जयंती में शादी में करते खर्च करोड़ों.
दूर रहो ,जूठन पर आना भूखे निपट निगोड़ों.
गोरी चिट्टी चमड़ी लेकर करते धंधे काले.
ले शहीद का नाम बिल्डिंगें चढ़ें सैकड़ों माले.
बाप बिचारा लाता बेटा मरा हुआ रिक्शे पर.
हेलिकोप्टेरों में उड़ते हैं सत्ता के सौदागर.
क्या वसंत क्या पतझर प्यारे क्या सावन क्या भादों
हंसी ख़ुशी जी रहे जहां सब जाओ आग लगा दो.
तांडव के सारे अनुयायी तडपे त्यक्त तपस्या.
धनलक्ष्मी रहती तिजोरिओं में असूर्यम्पश्या .
अमन चैन का करते रहते इत उत रेज़ा रेज़ा.
चीत्कार चहुँ ओर सुनें तो इनका बढे कलेजा.
हाल हुआ बेहाल मुल्क का अब भगवान् बचाएं.
अंधे पीस रहे बेचारे केवल कुत्ते खाएं.
अर्थपूर्ण और मार्मिक रचना
सुन्दर और प्रभावी..
हार्दिक बधाई
सही आपने यहाँ सुनाई ये बेबस सी कहानी
भोगे क्यूँ ये जनता, इन राक्षकों की मनमानी
प्रभु अब तुम कुछ करदो इनको याद दिलाने नानी
उपजे अपने देश में अच्छे नेता निर्मल ज्ञानी……..
@Vishvnand, शक्रिया, भगवन काश बोलते तथास्तु.
विश्वनंद दादा की बातों से सहमत हूँ… 🙂
और उन्होंने जो तुकबंदी पेश की है वो भी ज़बरदस्त है…मज़ा आ गया…
रचना की आख़िरी पंक्तियों में वास्तविक स्थिति साफ़ करके रख दी है आपने…सचमुच “अंधी पीसे, कुत्ते खाएँ” वाला हाल ही है…
मुझे लगता है p4p की कुछ रचनाओं का सार्वजनिक पाठ/सम्मलेन आयोजित किया जाना चाहिए…और ये रचना उसकी शोभा बढ़ाने लायक है… 🙂
@P4PoetryP4Praveen, 5 *****
@P4PoetryP4Praveen, आप के प्यार भरे शब्द अभिभूत कर गए. धन्यवाद.
samaj ka ek sach prastut kiya hai bsde hi vyangatmak andaj main —bahut badiya—badahai
@rajiv srivastava, अनुशीलन का धन्यवाद.
कुरीतियों पर प्रहार करती एक अच्छी कविता.
@U.M.Sahai, आप की प्रशंसा मायने रखती है धन्यवाद सर.
Every line is a gem…
@Sanket Singh, thanks for valuabale comment.
kavi ko pranam
dandwat
@abhishek, mera abhinanadan leejiye bhai.