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एक दिन -देखा एक चेहरा
Hindi Poetry |
आँखे बंद करता हू,तो बड़ी,
खामोशी से मेरे मन -मस्तिष्क को,
हवा की तरह स्पर्श कर के,
चला जाता है एक चेहरा ,
मुझे आज भी याद है वो दिन,
जब पहली बार दिखा था वो चेहरा !
जब भी वो चेहरा याद आता है,
कुछ पल के लिए मैं, मैं नही रहता,
बस हो जाता हूँ उस चेहरे का,
आज मेरी जिंदगी का हिस्सा बन,
गया है वो चेहरा!
ये चेहरा कुछ साल पूर्व ,जो की
अब सदियों की तरह लगता है,
मैने एक दिन एक लोकल ट्रेन
मैं देखा था, “उफ़” क्या था वो दिन!
वो कुछ सहमी सी,
लड़खड़ाते कदमो से,
अपने को संभालती हुई
मेरे सामने वाले सीट पे
आकर बैठ गयी थी!
चेहरे पे सूरज सा तेज,
मासूमियत ऐसी की चाँद,
भी शर्मा जाए! माथे पर
पसीने की कुछ बूंदे जो उसके
ललाट पर टीके रहना चाहती थी
पर उसने अपने दुपट्टे से जट
से पोछ दिया,और मुख से हवा
का फव्वारा छोड़ दिया,जिन्होने
बड़ी ही बेरहमी से शांत पड़ी
लटो को झगझोर कर रख दिया!
मेरी हिर्दय- गति की रफ़्तार
आँकड़ो की शर्हदो को
पार कर चुकी थी,पैरो मे
शरद की ठंड सी ठिठुरन थी
और आँखे बार -बार उस चेहरे
को देखना चाहती थी,पर डर था की
कही आँखो से आँखे ना मिल जाए
और वो मुख मोड़ ले!
मैं दबी सांसो से चोरी-चोरी उसे देखता रहा,
और उसके चेहरे की तस्वीर,
अपने दिल के कॅनवस पर बना रहा था,
की अचानक ट्रेन रूखी और,
इससे पहले की मैं उसकी,
तस्वीर को सज़ा सवार पाता,
वो चली गयी,पर जाते -जाते
एक कभी ना मिटने वाली
याद छोड़ गयी–हाय क्या था वो
एक दिन-और वो चेहरा!
डॉक्टर राजीव श्रीवास्तवा
लोकल ट्रेन का वाकया जिन्दगी का हिस्सा बन गया !
ये कविता तो नहीं, एक रहस्यमयी किस्सा बन गया .
रहस्य और भी गहरा हो गया राजीव जी ! 🙂
@Harish Chandra Lohumi, raaj ko raaj rahne do
hmm
@renukakkar, thanks—- by the way ye hmmm kya hai
@rajiv srivastava,
means your poem finished to soon for me to leave a comment….but i ranked it with a large number of stars:)
मेरा दिल ले गयी ओये 🙂
क्या बात है सर जी 🙂
@dp, dhanyavad
क्या बात है सर जी , तुसी तो कमाल कर दिता जी…
पर एक बात बताओ आप कि क्या कभी ऐसा वाकई होता है कि किसी के चेहरे पर इस कदर नजर रुक जाये…सॉरी पर लगता है आप ने अपना हाले-दिल लिखा है…
@anju singh, itni sunder pratikiriya ke liye dhanyavad.!ji han aisa hota hai ,hum roj kai chehere dekhte hai ,par kabhi koi chehera aisa dikh jata hai jo seedhe dil main utar jata hai–phir chahe anchahe wo apni yaad dilata rahta hai.
वाह क्या बात है
बहुत मनभावन और प्यारी रचना
इक किसी हसीना का ऐसा दिल पर कब्जा करना
जो हर दम याद रहना और जिन्दगी को सुन्दर बनाना
रचना के लिए शानदार बधाई स्वीकारना
पर एक बात है मैं कॉलेज में पढ़ता था मुंबई में
लोकल ट्रेन से ही जाता था कॉलेज में पढ़ने
तब भीड़ भी आज जैसी नहीं होती थी लोकल ट्रेन में
और ऐसे जाने कितने वाकिये हुए हैं तब मेरे जीवन में
कुछ याद रहे पर सब भुला देना पडा है जल्द इक से शादी के बाद में …
खैर किसको अब कोई हर्ज़ हो गर इस बारे में कोई कविता उभर आये अपने आप में …. 🙂
@Vishvnand, apne abubahv batane ke liye dhanyavad sir! aap ki pratikiriya dimaak ke sare Chanel khol deti hai.