« दिलों की माला…! | रिश्वतखोरी में बदमाशी ….! » |
क्यों कह दें इन्हें सुंदर…!
Hindi Poetry |
इस कविता के भाव मंदिरा बेदी या बिपाशा पर भड़ास निकालना नहीं है, बल्कि यह कविता ‘नग्नता’ का वह पर्यायवाची शब्द बता रही है, जिसे आप और हम ‘बोल्डनेस’ कहते हैं। सभी चाहते है कि इस भागते और विकास करते वक्त में सभी ‘बोल्ड’ हो…. पर विचारों और व्यवहार में। क्योंकि हद से ज्यादा होती ‘बोल्डनेस’ उर्फ ‘नग्नता’ का बोझ शायद हमारी भारतीय संस्कृति भी ना उठा पाएंगी। क्यों मैं ठीक कह रही हूं ना?
भला क्या होता जा रहा है भारतीय ‘संस्कृति’ को,
और ये कैसा रोग लगता जा रहा है भारतीय ‘नायिकाओं’ को!
कभी भारी और शालीन कपड़ो से सजना था इनका ‘शौक’,
अब भला क्यों लगने लगा है इनको हल्के कपड़ों से भी बोझ!
पहले ‘वोग’ के लिए मंदिरा ने खिसका दिया अपना टाॅप,
और अब बिपाशा ने ‘मैक्सिम’ के लिए किया है सेम वही जाॅब!
कभी गुजरे वक्त में सुंदरता का ‘आंकलन’ था मन की सुंदरता,
तो क्यों आज ‘नंगे’ शरीर को बना दिया है खूबसूरती का पैमाना!
जब ‘धीर’ मन में नंगा शब्द मचा देता है अधीरता,
तो… क्यों खुद का नंगापन आंखों में ‘शर्म’ नहीं दिखाता!
भला क्यों, आंशिक रूप से ढके शरीर को ‘कह दें’ सुंदरता,
जब… बच्चों और बड़ों के समक्ष उन्हें देखने से ‘आंखें चुराए’!!
kathan kathoor sach hai ! rachna sandesh ki dhristi se kafi rochak hai parantu prastuti kuch sudhar maang rahi hai.Aap isi visay par aur kuch likhe ,mujhe poora viswas hai ki sandesh ke saath kai logo ki aankhe bhi khul jaayengi– aakhir hamara farz hai ki hum apni kalam ke madhyam se kuch janjagriti hetu karya kar sake-
@rajiv srivastava,
ji ha बिलकुल koshish karenge… aap jaisa sath raha to जरुर aisa hi hoga…
प्रतिक्रिया ke लिए बहुत बहुत धन्यवाद
Very meaningful & beautiful poem on the subject of dress code
& intensely thoughtful to be deliberated upon and understood by youngsters who tend to be shameless in disguise for boldness or being modern.
On one side is burkhaa, compulsion of which is like a sin perpetrated on womenfolk but the freedom to dress as you like is making some the so called forward & bold women commit a sort of sin by wearing unbecoming dresses tending more towards nudity or appearing nude,
Both extremes are very harmful to the well being of the society. Beauty is in balance & decent dressing.
(Some improvement is felt necessary in rhyming in the poem)
@Vishvnand,
नमस्कार sir ji,
aap ki har baat se main sahmat hun.. or yeh bhi manti hun ki is baar मेहनत में kuch jyada hi kami rah gyi…
प्रतिक्रिया ke लिए बहुत बहुत धन्यवाद
आपने भारतीय संस्कृति की स्थिति की दुखती रग पर हाथ रख दिया है…
इस मामले में भारतीय नारी का जो प्रतिनिधित्व करती नारियाँ (नायिकाएँ) हैं उन्हें ही पहल करनी होगी…अगर वो “ना” कहना सीख लें, तो फ़िल्म, टीवी से लेकर कॉलेज तक में शालीनता का वातावरण फैल सकता है…
(5वीं एवं 6वीं पंक्ति में मामूली सा सुधार है…5. लिए लिए की पुनरावृत्ति ठीक कर लें. 6. शेम के स्थान पर सेम होगा.)
वैसे आप इस नयी तस्वीर में काफ़ी शालीन और सुन्दर लग रही हैं…”एक आदर्श भारतीय नारी…” 🙂
रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई… 🙂
@P4PoetryP4Praveen,
प्रतिक्रिया ke लिए बहुत बहुत धन्यवाद, mai आप की बात से भी sahmat हूँ.
aap ke kahe anusaar maine galti ko sudhar लिया है…और कोशिश rahegi ki aage se aisa na ho.
waise meri shan ki gayi तारीफ के लिए बहुत बहुत धन्यवाद sir …
आत्मा तो आवरण में दब गयी है,
देह को करते दिगंबर हैं सभी.
देह से पटता हुआ बाज़ार है,
इस कला के तो धुरंधर हैं सभी.
आप ने जो व्यक्त की है वेदना,
लोभ का तम काट पाए तो भला.
आज संस्कृत और कृति में हो गया
जानलेवा हद से ज्यादा फासला.
@siddha Nath Singh,
ji बिलकुल sir आप बिलकुल sahi kah rahe ho..
प्रतिक्रिया ke लिए बहुत बहुत धन्यवाद
अंजू विषय का अच्छा चयन किया है
अन्यथा मत लेना कविता में और कथन में अंतर है और खास कर जब विषय कठिन हो तब और परिश्रम करना पड़ता है अत: आप को इस के लिए और प्रयास करना पड़ेगा बेश आप किसी भी विषय का चयन करें पर कविता आवश्यक शर्तें भी जरूरी हैं सीधा २ कथन किविता से अलग होता है
मेरी शुभकामनायें आप के साथ हैं आप अपने उद्देश्य में पूर्ण सफल हों निरंतर लिखती रहें अपने आप सब thik hone lgega
@dr.ved vyathit,
ja ha bilkul sudhar karungi.. or ha galti hune or kami hune par main kisi bhi baat ko anytha nahi lete hun..
प्रतिक्रिया ke लिए बहुत बहुत धन्यवाद,
बहुत बढ़िया भाव दर्शाती हुए कविता है..ये गंभीर विषय है जो उपभोगतावाद की कटु परिणिति है..
सुधार के बारे मे पहले ही बहुत कहा जा चुका है..आप प्रयास करेंगी ही..
बधाइयाँ विषय चयन के लिये….
@Sinner,
प्रतिक्रिया ke लिए बहुत बहुत धन्यवाद,
aap sab ke kathan main yaad rakhungi or sudhar bhi karungi..
मुझे “निजी तौर पर” इस रचना की भाषा शैली या भावाभिव्यक्ति पर कोई आपत्ति नहीं है….बल्कि मैं तो ये कहूँगा कि आपने स्वयं नारी hote हुए भी इस तरह के मुद्दे को उठाकर साहसपूर्ण कार्य किया है…जिसके लिए आप बधाई की पात्र हैं…
Aaj-kal films aur tv pe jis तरह beep (sensor) ka prayog ho raha है…aisi तो कोई yahan aavashyakta mehsoos नहीं ho rahi है…
Aur haan मैं ise kavita नहीं कहूँगा, रचना hi kahoonga…vyangya की shreni mein rakhna aur भी behtar hoga…jo कि apni baat को rakhne/kehne kaa sabse saral evam prachalit tareeqa है…
Aise hi likhte rahiye…adhik sudhaar की parwaah karengi तो budhape mein hi likhna ho sakega…sudhaar तो karat-karat abhyaas के apne आप hi ho jaayega… 🙂
क्या कहना आप का जी,
आप ने तो हर बाते हकीकत कही है
हर बात को लिखा इस तरह ,
समजा जा सके ,और उनका पालन कीया जा सके ,
हम वादा करते है आप से
कभी निराश न करंगे आप को ,
हर पल देना हमे इस सीख ,
…………..धन्याद ………………………..
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@jitender kumar,
धन्यवाद जीतेंदर जी .. bahut bahut आभार आप का
anju ji
behad rochak rachna hai ye aapki..aur sabke comments padhke bht kuch sikhne mila…sach me yahan itne maahir log hain k har ek comments se kitna kuch sikhne milta hai…….
aapka bht bht shukriya aise vishay aur aisa bold likhne k liye..bht kum log aise likhne ki koshish bhi karte hain…
bas ek baat kahungi jo samjhme aai hai ..agar kadwi dawa ko bhi mithe gud me lapet k khilaya jaye to jaldi se gale k niche utar jati hai… hai na…????
@KasaK….Dil ki, ji बिलकुल कसक जी, आप सही बोल रही है . माफ़ी चाहती हूँ इतनी देर से जवाब देने के लिए…