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घर में कुछ फोटुओं के सिवा अब बुजुर्गों का क्या रह गया.

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Hindi Poetry
घर में कुछ फोटुओं के सिवा अब बुजुर्गों का क्या रह गया.
और वो भी किसी टांड पर अलबमों में दबा रह गया.
 
जिसको रचने में सदियाँ लगीं एक पल में हुआ खाक वो,
देख बन्दों का कारे अमल कसमसा कर खुदा रह गया.
 
जिनको दरकार पानी की है,सींचते हैं उन्हें खून से,
कायदे सब कहीं खो गए, सिर्फ अल कायदा रह गया .
 
अच्छी चारागरी ये हुई,चारागर सिर्फ चंगे हुए,
बस अलामात दाबे गए,मर्ज़ तो लादवा रह गया.
 
रात तो सारी तनहा कटी,आई बुझने को  शम्मे सहर,
अब तो दीदार तू बख्श  दे,अब भी कोई गिला रह गया.
 
चाँद हो चल सकोगे फ़क़त,रात की सर्द सी छाँव में,
बैठ जाओ कि दिन चढ़ चुका,रास्ता अब कड़ा रह गया.
 
ज़िन्दगी एक पल भी जियें भागादौड़ी में फुर्सत कहाँ,
मंजिलें मुंह चिढाती रहीं,मैं ज़मीं नापता रह गया.
 
हार मानी न इंसान ने, आपदाएं परखती रहीं,
आग सूरज बरसता रहा,फिर भी पौधा हरा रह गया.
 
रुक के एक पल ज़रा देखते,क्यों लरजते रहे लब मेरे,
जो निगाहों का इज़हार था आप से अनसुना रह गया.
 
करके आखिर मुसाफिर थका जुस्तजू भोर से सांझ तक,
कुछ न मकसद सफ़र का मिला,जो मिला,छूटता रह गया.
 
शक्लो सूरत संवरती रही उम्र भर हसरतों की मगर 
धीरे धीरे अँधेरा घिरा,बेशक़ल आईना रह गया.  

4 Comments

  1. Vishvnand says:

    बढ़िया अंदाज़, बढ़िया रचना

    पार्टी में रिश्वतखोरी लूट मार और देते रहे सुपारी
    गांधीजी फोटुआ दीवार पर टंगा ताकता रह गया …

  2. Harish Chandra Lohumi says:

    मर्मस्पर्शी ! बधाई !!!

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