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“चरमर-घर”
Hindi Poetry |
‘पेरोडी’
(तर्ज: फिल्म मधुमती का मुकेश का गाना –
“सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं,
हमें डर है, हम न खो जाएँ कहीं…”)
“सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं,
हमें डर है, हम न खो जाएँ कहीं…”)
“चरमर-घर”
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पुराना है घर और नया घर नहीं,
हमें डर है ये न गिर जाए कहीं !
पुराना है घर और नया घर नहीं !
ये कैसी खस्ता है हालत इसकी छत पर,
दरार आ रही है हमेशा वहीं पर,
मेरी मुनियाँ, मेरे अपने ही फिरेंगे यहीं !
पुराना है घर और नया घर नहीं !
ये मेरी बगिया का खिलना निरंतर,
कर रहा है डर को छू-मंतर,
गोरी गैया, उसका बछड़ा करेंगे गोबर यहीं !
पुराना है घर और नया घर नहीं !
ये कैसा रस्ता है धोरों पै चढ़कर,
जिनके आगे भी उतरना है बढ़कर,
तंग गलियाँ, ऊंची सीढ़ियाँ नहीं हैं और कहीं,
पुराना है khandahar, नया घर नहीं !
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bahut sunder !kya andaj hai poorane ghar ka dard bayan karne ka.
@rajiv srivastava,हार्दिक धन्यवाद, प्रिय
राजीव !
Nice one & a very hearty song
Liked the parody attempt very much.
But in my opinion this tune does not suit the meaning, mood, feelings & concern in the poem for the good old house.
इस गीत में थोड़ा सा फेरफार कर मुकेश जी के ही गीत ” ओ जानेवाले हो सके तो लौट के आना ” या किसी अन्य ऐसी भावना दर्शानेवाले गीत की तर्ज़ पर रचना ही उचित हो ऐसा मुझे लगता है …
“ओ तूने बचपन बिताया यहीं पर ,लाया बीबी जवां हो इसी घर
तेरा जुडा नाम, तेरा जुडा काम ,तेरा तो धाम है यही”
——–ज़ज्बात की नीव पर खड़ी प्यार भरी इमारत को याद करके कवि ने मुझे भी अपने बीकानेर के पुराने मकान की याद दिला दी है ,जिसे मैं लगभघ भूल सा गया था .पैरोडी प्रशंसनीय है
@c k goswami,कृपया पैरोडी की अंतिम
पंक्ति को पढ़कर अवधारणा करें तो उचित होगा, जिसमे मैंने जिस पुराने घर को
देखकर रचना की है उसकी स्तिथि अनुसार ‘पुराना घर’ के सन्दर्भ में खंडहर शब्द का उपयोग करके स्तिथि स्पष्ट करदी है ! धन्यवाद !
@c k goswami, साभार धन्यवाद !
बहुत अच्छी रचना ..जय श्री कृष्ण
@kishan, धन्यवाद, प्रिय किशन !
नमस्कार सर जी,
बहुत बढ़िया सर जी…
एक घर के टूटने और उससे बिछड़ने का दर्द और मलाल साफ नजर आ रहा है… वाकई जिनके घर की हालत होती होगी ऐसी ही वो सोचते होंगे यही..
@anju singh, धन्यवाद, प्रिय अंजू !