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नहीं बेवजह है यूँ मंजिल से दूरी
Hindi Poetry |
नहीं बेवजह है यूँ मंजिल से दूरी
तड़प उसकी खातिर है दिल में ज़रूरी.
जुदा हो गए जाने मन आप जब से,
हुई ज़िन्दगी ये अधूरी अधूरी.
हुए संकुचित अर्थ शब्दों के ऐसे
परेशां हूँ, हो कैसे अभिव्यक्ति पूरी.
मिलें किससे ,किससे रहें दूर सबने,
रखे राम मुंह में औ बाजू में छूरी.
अज़ब हाल इन्साफ का, अब न अपने ,
अपीलें,दलीलें न जज औ’ न जूरी.
हरेक मंच पर बस तमाशे तमाशे,
सधे रस्सियों पर जमूरा जमूरी.
बनी आज तहज़ीब है बदतमीजी,
शऊर अब ज़माने का है लाशऊरी.
खुदा आज के बंदगी के न क़ायल,
उन्हें जँच रही है फ़क़त जी हुजूरी.
बनी सादगी अब है जंजाल जी का,
सफल अब वो उतना जो जितना फितूरी.
वाह क्या बात है,
हरइक शेर लाजवाब और अंदाज़ प्यारा ..
हार्दिक शुक्रिया ….
आदर्श कैसा ये आदर्श अपना
आदर्श को अब गिराना जरूरी ….
@Vishvnand, थैंक्स विश्व जी.
हुए संकुचित अर्थ शब्दों के ऐसे
परेशां हूँ, हो कैसे अभिव्यक्ति पूरी…..like these lines d most 🙂
@prachi sandeep singla, आभार,
बहुत सुंदर दिल को भा गयी आपकी ये सुंदर मनभावन गजल-बधाई
@sushil sarna, सरना साहब, आप के अलफ़ाज़ के लिए शुक्रिया.
वाह सर जी, बहुत सुन्दर और वास्तविक रचना है आप की.
मन खुश हो गया है … आप को बहुत बहुत बधाई..सर
@anju singh, धन्यवाद अंजू जी.