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नहीं बेवजह है यूँ मंजिल से दूरी

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Hindi Poetry
नहीं बेवजह है यूँ मंजिल से दूरी
तड़प उसकी खातिर है दिल में ज़रूरी.
 
जुदा हो गए जाने मन आप जब से,
हुई ज़िन्दगी ये अधूरी अधूरी.
 
हुए संकुचित अर्थ शब्दों के ऐसे
परेशां हूँ, हो कैसे अभिव्यक्ति पूरी.
 
मिलें किससे ,किससे रहें दूर सबने,
रखे  राम मुंह में औ बाजू में छूरी. 
 
अज़ब हाल इन्साफ का, अब न अपने ,
अपीलें,दलीलें न जज औ’ न जूरी.
 
हरेक मंच पर बस तमाशे तमाशे,
सधे रस्सियों पर जमूरा जमूरी.
 
बनी आज तहज़ीब है बदतमीजी,
शऊर अब ज़माने का है लाशऊरी.
 
खुदा आज के बंदगी के न क़ायल,
उन्हें जँच रही है फ़क़त जी हुजूरी.
 
बनी सादगी अब है जंजाल जी का,
सफल अब वो उतना जो जितना फितूरी. 

8 Comments

  1. Vishvnand says:

    वाह क्या बात है,
    हरइक शेर लाजवाब और अंदाज़ प्यारा ..
    हार्दिक शुक्रिया ….

    आदर्श कैसा ये आदर्श अपना
    आदर्श को अब गिराना जरूरी ….

  2. prachi sandeep singla says:

    हुए संकुचित अर्थ शब्दों के ऐसे
    परेशां हूँ, हो कैसे अभिव्यक्ति पूरी…..like these lines d most 🙂

  3. sushil sarna says:

    बहुत सुंदर दिल को भा गयी आपकी ये सुंदर मनभावन गजल-बधाई

  4. anju singh says:

    वाह सर जी, बहुत सुन्दर और वास्तविक रचना है आप की.
    मन खुश हो गया है … आप को बहुत बहुत बधाई..सर

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