« आज फिर जश्न राहों ने मना लिया | अरे किधर गयी……! » |
पल-पल ख़ुद को
Hindi Poetry |
जहाँ गौर किया, वहीँ शाम बन गयी सादी शाम
क्यूँ छेड़ते रहते हैं पल-पल ख़ुद को उम्र तमाम
ख़ुद ही ऊबें ख़ुद ही बहलें
ख़ुद ही ख़ुद में क्या कुछ कह लें
जाने तुमसे कह-सुन के भी पा लेते हैं कैसा आराम
क्यूँ छेड़ते रहते हैं पल-पल ख़ुद को उम्र तमाम
साँसों के साथ चलें बिन थके
जब इनकी मर्ज़ी न हो तो हम भी रुकें
मसरूफ़ तुम, देखो पाने हैं तुम्हें कितने ही मक़ाम
क्यूँ छेड़ते रहते हैं पल-पल ख़ुद को उम्र तमाम
एक अलग तरह की कविता…एक अलग सा एह्सास ।
बधाई !!!
हरीश जी…कोशिशें जारी हैं ज़िन्दगी झलकाने की, दुआ कीजिये कि उलझनों की धुंध मन के आईने को न धुन्धलाये…
वाह , बहुत खूब
बढ़िया अंदाज़, मनभाया
हार्दिक बधाई
आपका आशीर्वाद बड़ा सुखकर है सर!
”साँसों के साथ चलें बिन थके
जब इनकी मर्ज़ी न हो तो हम भी रुकें”
बोहुत अच्छी पंक्तियाँ है ये
अच्छी रचना बधाई!
पल्लवी जी..क्योंकि आप ने सराहा है और पसंद की ये पंक्तियाँ..मैं कहना चाहूँगा, बक़ौल गुलज़ार साब…”कुछ पत्ते पेड़ों की शाखों से उतरे थे, वो पत्ते दिल थे दिल थे..दिल से रे!
अलग सी लगी और ज़िन्दगी के करीब भी 🙂
splendidly written….too good jijaji 🙂