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बचपन
Hindi Poetry |
वो बचपन की खुशबू
वो बचपन की यादें
वो गुज़रा हुआ ज़माना
अब भी मुस्कान वो ला दें
वो आँगन का झूला
सर्दियों मे नरम रजाई
गुसलखाने से नफरत
खिलोनो मे खुशी पाई
जीने की न कोई हद थी
सितारे दिन मे भी दिखते
मस्ती हर साँस से झलकती
कभी पढते तो कभी लिखते
वो नानी का बना हलवा
चाची की हरी चटनी
तूफ़ान मेल सा दिन भगाते
मिनटों मे रातें भी कटनी
इन्द्रधनुष सी सुन्दर तितली
भूख का न कभी ठिकाना
माँ से लड़ना झगड़ना
फिर वोही बनती सिरहाना
वो बचपन की मौजें
वो बचपन की मस्ती
क्या मोल लगाऊं उनका
सबसे बढ़िया , सबसे सस्ती
बचपन की तुम्हरी बातें
पढ़ हमरा मन ललचाया
लगता तुम थे बड़े नटखट
बहुतों की आँख का तारा
इस मधु मोहक रचना पर
लो अभिनन्दन भी हमारा…
@Vishvnand,
Thank U sir
विजू जी आपका प्रायस सराहनीय है । लेकिन मुझे लगता है कि शब्द और मात्राओं के नियन्त्रण ने भाव- अभिव्यंजनाओं के प्रवाह को भी नियन्त्रित कर दिया है इस रचना में । कहने का मतलब है कि रचना को “खुल कर” नहीं लिखा गया है ।
और भी आकर्षक बन सकती है ये रचना । वैसे प्रयास मन भाया ।
और इस रचना की याद दिला दी आपन…….।
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो,
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी।
मग़र मुझको लौटा दो बचपन का सावन,
वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी।
मोहल्ले की सबसे निशानी पुरानी,
वो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी,
वो नानी की बातों में परियों का डेरा,
वो चेहरे की झुर्रियों में सदियों का फेरा,
भुलाए नहीं भूल सकता है कोई,
वो छोटी-सी रातें वो लम्बी कहानी।
कड़ी धूप में अपने घर से निकलना
वो चिड़िया, वो बुलबुल, वो तितली पकड़ना,
वो गुड़िया की शादी पे लड़ना-झगड़ना,
वो झूलों से गिरना, वो गिर के सँभलना,
वो पीपल के पल्लों के प्यारे-से तोहफ़े,
वो टूटी हुई चूड़ियों की निशानी।
कभी रेत के ऊँचे टीलों पे जाना
घरौंदे बनाना,बना के मिटाना,
वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी,
वो ख़्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी,
न दुनिया का ग़म था, न रिश्तों का बंधन,
बड़ी खूबसूरत थी वो ज़िन्दगानी।
@Harish Chandra Lohumi,
will definately try to come up to your standard sir.
thx for your observations
वाह… रचना पढ़कर तो बचपन की यादें ताजा हो गई और कमेन्ट पढ़कर तो बचपन को दोबारा पाने का लालच होने लगा… काश की हमारा बचपन दोबारा मिल सकता…
@anju singh,
is baat ko hum ek aur angle sey dekh saktey hain, phir young feel karna shuru karey & believe me, its all that fun once again. I have tried & my mind now enjoys all those small things I did as a child, sirf, farak yeh hai ki ab gadgets etc jyada time le jatey hain
i really loved the poem
@rajdeep bhattacharya,
Thank U Rajdeep, Bachpana hota hee aisa hai, enjoy kara deta hai
बड़ा प्यारा लगा पड़ कर आपकी इस रचना को…….
आओ तुम्हे मै ले के चलूँ, उन भूली बिसरी यादों में;
इस भाग दौड़ से दूर कंही, बचपन की उन बातों में
@Harshit Garg,
Thanks Harshit
I too missing now all these vijay Ji bahut sunder