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मैं ही सृष्टि हूँ !

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Hindi Poetry

भोर की निश्चल काया हूँ ,

या तम की गहरी छाया हूँ !

उपवन का महकता फूल हूँ ,

या गॉधुलि बेला की धूल हूँ !

इंद्रधनुषी रंगो का मेला हूँ ,

या उड़ता पंछी  अकेला हूँ !

शेर की गरजती दहाड़ हूँ ,

या अचल खड़ा पहाड़ हूँ !

टपकती ओस सा सुन्दर हूँ ,

या सूखे काठ सा नश्वर हूँ !

कोयल की कर्णप्रिय आवाज़ हूँ ,

या जंगल की धधकति आग हूँ !

पवन सा जीवनदाइ हूँ ,

या वध करता कसाई हूँ !

जो भी हूँ वो मैं ही हूँ ,

सृष्टि मुझसे है  ,मैं सृष्टि से हूँ !

डॉक्टर राजीव श्रीवास्तवा

10 Comments

  1. Harish Chandra Lohumi says:

    वाह ! सुन्दर और सजीव !
    बधाई !
    (कुछ टाइपिंग की त्रुटियों को दूर कर दें तो चार चाँद लग जायेंगे इस रचना की सुन्दरता पर )

  2. Sanjay singh negi says:

    gud one nice poem badai ho

  3. sonal says:

    A Very good poem.

  4. siddha nath singh says:

    अहम् ब्रह्मास्मि की और इशारा करती कविता.मनु महाराज भी कहते हैं-
    आत्मवत सर्वभूतेषु सर्वभूतानि आत्मनि.

  5. Vishvnand says:

    मैं भी सृष्टि का सुन्दर रूप हूँ
    सृष्टि की ही रचना हूँ ….

    बहुत खूब अति प्यारी
    हार्दिक बधाई

  6. rajiv srivastava says:

    itni sunder pratikiriya aur sneh ke liye koti-koti dhanyavad

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