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मैं ही सृष्टि हूँ !
Hindi Poetry |
या तम की गहरी छाया हूँ !
उपवन का महकता फूल हूँ ,
या गॉधुलि बेला की धूल हूँ !
इंद्रधनुषी रंगो का मेला हूँ ,
या उड़ता पंछी अकेला हूँ !
शेर की गरजती दहाड़ हूँ ,
या अचल खड़ा पहाड़ हूँ !
टपकती ओस सा सुन्दर हूँ ,
या सूखे काठ सा नश्वर हूँ !
कोयल की कर्णप्रिय आवाज़ हूँ ,
या जंगल की धधकति आग हूँ !
पवन सा जीवनदाइ हूँ ,
या वध करता कसाई हूँ !
जो भी हूँ वो मैं ही हूँ ,
सृष्टि मुझसे है ,मैं सृष्टि से हूँ !
डॉक्टर राजीव श्रीवास्तवा
वाह ! सुन्दर और सजीव !
बधाई !
(कुछ टाइपिंग की त्रुटियों को दूर कर दें तो चार चाँद लग जायेंगे इस रचना की सुन्दरता पर )
@Harish Chandra Lohumi, sahirday dhanyavad
gud one nice poem badai ho
@Sanjay singh negi, thanks Sanjay ji
A Very good poem.
@sonal, thanks Sonal
अहम् ब्रह्मास्मि की और इशारा करती कविता.मनु महाराज भी कहते हैं-
आत्मवत सर्वभूतेषु सर्वभूतानि आत्मनि.
@siddha nath singh, sahi kaha sir–dhanyavad
मैं भी सृष्टि का सुन्दर रूप हूँ
सृष्टि की ही रचना हूँ ….
बहुत खूब अति प्यारी
हार्दिक बधाई
itni sunder pratikiriya aur sneh ke liye koti-koti dhanyavad