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यही ज़िद है, यही ठान रखा है

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Hindi Poetry

तांबा, कल सोना होगा,

आज सोना, फिर ताम्बा .

एक सप्ताह की दूरी है,

कभी-कभी एक सप्ताह

महीने से भी हाथ मिला लेता है,

और कभी तो वह किसी का भी सगा नहीं,

मुँह फेरता फिरता है .

तांबा, कल सोना होगा,

आज सोना, फिर तांबा .

मगर समय को भी टिक टिक की आदत है,

हमेशा जूते पहने रहूँगा

यही ज़िद है, यही ठान रखा है .

और फिर हमें भी बुझने नहीं देता

और सप्ताह भी बस नहीं कहता,

एक दिन भी कम, सहूंगा नहीं

यही ज़िद है, यही ठान रखा है .

तांबा, कल सोना होगा,

आज सोना, फिर तांबा .

– यशवर्धन गोस्वामी,

२१-१-११.

8 Comments

  1. rajiv srivastava says:

    Dear Yashvardhan–
    tum bahut talented ho.is umr main aisi soch kafi sarahniye hai.bahut khoob likha hai badahai

  2. Kwahish says:

    Very Nice थिंकिंग यश जी …… आपकी soch behad khoob rahi..
    Keep writting…

    • Yashwardhan Goswami says:

      @Kwahish, ख्वाहिश जी, तह दिल से शुक्रिया और आप फ़िक्र ना करें, में लिखता ही रहूँगा .

  3. kishan says:

    अच्छी रचना …:) जय श्री कृष्ण

  4. anju singh says:

    bahut sundar. पर यहाँ यह भी साबित होता है की आप की सोच ऐसी रही तो आप आज भी सोना हो और कल भी सोना ही रहोगे…ऐसे ही लगे हो भाई जी…

    • Yashwardhan Goswami says:

      @anju singh, शुक्रिया मेम, और बात सोने की है तो, अभी तोह में ताम्बा ही हूँ .

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