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ये ज़िन्दगी हरेक क़दम इम्तिहान थी.

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Hindi Poetry

दीवारों दर के साथ जुडी दास्तान थी,

खंडहर की एक वक़्त बड़ी आन बान थी.

 

तारी ज़ेहन पे खौफ बला का कोई रहा,

जो बोलती थी आँख, वही बेजुबान थी.

 

तासीर कैंचियों की  उसे गालिबन मिली

पंछी की सहमी सहमी हवा में उड़ान थी.

 

सोये तो फिर उठे ही नहीं वो सफ़र के बाद,

अबके मुसाफिरों को गज़ब की थकान थी

.

आदत बुलंदियों की रही बादशाह को,

समझा नहीं कि आगे भयंकर ढलान थी.

 

छोड़ा दरअस्ल तीर किसी दोस्त ही ने था,

दुश्मन के अपने हाथ तो खाली कमान थी.

 

अपनी पहुँच से दूर रहीं कामयाबियां,

ये ज़िन्दगी हरेक क़दम इम्तिहान थी.

9 Comments

  1. dp says:

    vaah sir ji..
    ये ज़िन्दगी हरेक क़दम इम्तिहान थी.
    ye baat deegar hai ki ham hamesha passed with grace rahe….

    Superb…. 5*

  2. U.M.Sahai says:

    अच्छी लगी.

  3. P4PoetryP4Praveen says:

    अपने में गहराईयाँ समेटे एक अद्भुत रचना… 🙂

    बधाई… 🙂

  4. anju singh says:

    sahi कह रहे है . वाकई बढ़िया रचना है…

  5. anju singh says:

    @anju singh,

    sahi कह रहे है praveen ji…
    वाकई बढ़िया रचना है…

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