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“राम-भरोसे”

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Hindi Poetry
“राम-भरोसे”
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हर मंदिर में, मस्जिद में, गिरजाघर में या पावन तीरथ में,

भगवान, ख़ुदा या ईसा को कई सदियों से पूजा जाता है,

ईश्वर एक ही है तो मानव क्यों ऐसी भिन्नता अपनाता है ?
एक ही मालिक है सबका, एक ही भाग्य-विधाता है !

संस्कृति भिन्न-भिन्न होने से ऐसा ही होता आ रहा,

इसके फलस्वरूप ही मानव जीवनभर गोता खा रहा,

पारस्परिक भेद-भाव, ईर्ष्या-द्वेष फैलता जा रहा,

धनी-वर्ग संपन्न हो रहा, गरीब ही धोखा खा रहा !

साधु-संत, मठाधीश, मौलवी ऐसा होने में सहयोगी हैं,

इनके प्रवचन ही सदा अधिकाधिक सांप्रदायिक संयोगी हैं !

देश में होते चुनाव तब ये भेद-भाव हो जाता है स्पष्ट,

जबरन वसूल होता चन्दा जिससे देश हो रहा है भ्रष्ट !
जातिवाद, साम्प्रदायिकता ही दृष्टिगत होती चहुँओर,

मौसेरे भाई बन जाते हैं जो होते बेईमान और चोर !

क्षेत्रीयता झलकती साफ़ जो बांधती रहती है डोर,

इने-गिने लोग ही छाये रहते यथा घटा-घनघोर !

चुने हुए सांप्रदायिक नेता भाई-भतीजावाद फैलाते,

श्वेत-वस्त्र धारण करने से ही वो देश-भक्त कहलाते !

भोली-भली जनता को चपल वाचIली से बहलाते,

कल्पित सब्ज़-बाग़ दिखलाकर केवल अपनी शान बढाते,

झौंपड़-पट्टी से पनपे ये शाही महलों में मौज मनाते,

मजहब-धर्म के मठाधीश भी अपना शाही साम्राज्य बढाते !

राज-नेता और धर्मध्वजी वर्ग एकत्रित करते रहते दौलत,

जिन पर नहीं कोई अंकुश, विदेशी बैंकों की बदौलत !

गरीब भुखमर वर्ग आशान्वित रहता कोई खाना परोसे,

तरसता बस बसर करता रहता है पूर्णतः राम-भरोसे !

उठो जागो शिथिल निद्रा से प्रभावी जागृति लाओ,

युवावर्ग को चेताओ, मिल-जुल के परिवर्त्तन लाओ !

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8 Comments

  1. Harish Chandra Lohumi says:

    कई कटु सत्य हैं इस रचना में झकझोरने वाले, लेकिन एक जाग्रत करने वाली चेतना भी है । और कहती सी प्रतीत हो रही है कि अभी भी देर नहीं हुई है। कहीं ऐसा न हो कि इतनी देर हो जाये कि हमारे पास अन्धेर में समाने के सिवाय कोई चारा ही न हो !
    एक जाग्रत करने वाली रचना ! हार्दिक बधाई !!!
    (Deserves least 4-star.)

  2. Vishvnand says:

    बहुत सुन्दर अर्थपूर्ण मनभावन रचना
    जाने कब सुधरेंगे हम सब
    मालिक का क्यूँ नाम ले रहे
    बदमाशी मनमानी कर सब
    तोड़ रहे हैं उस डाली को
    जिसपर हम ही बैठे हैं सब

    commends for the apt & meaningful poem

  3. anju singh says:

    नमस्कार सर जी,

    आप की इस रचना की मै क्या तारीफ करूँ , आपने आप मैं बहुत सारे सवालों के जवाब दिए है और बहुत सारे सवाल भी खड़े कर दिए है… मैं एस रचना की गंभीरता से काफी प्रभावित हुई हूँ… धन्यवाद सर जी…

  4. rajiv srivastava says:

    sab Ram bharose hi hai!———- wah kya baat hai————–sunder rachna

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