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राह अलग अनजाने मंज़र रहबर छूट गया.
Hindi Poetry |
राह अलग अनजाने मंज़र रहबर छूट गया.
देस बिदेस बराबर दोनों जब घर छूट गया.
क्या कानून गढ़े हैं तुमने बेगुनाह बिकते
जिसके पल्ले हो मालो ज़र अक्सर छूट गया.
हमसा ही मजबूर मिला जब दुश्मन भी अपना,
गुस्से में जो लिया हाथ में पत्थर छूट गया.
डाली जब दुनिया ने बेडी रोजी रोटी की,
अहले जुनूँ से उन गलियों का चक्कर छूट गया.
शीत लहर में प्लेट फार्म पर अकड़ा पड़ा मिला,
कैदे हयात से एक भिखारी मर कर छूट गया.
खूब संवारा इल्मो तरबियत से बाहर बाहर
लेकिन जो हैवान था अपने अन्दर,छूट गया.
सार सम्भाल न रंगों रोगन कुछ भी काम आना,
टेढ़ नींव में देता पत्थर ही गर छूट गया.
लेकिन जो हैवान था अपने अन्दर,छूट गया.
अन्दर के हैवान से लड़कर इन्सां टूट गया !
छू गयी एस. एन. साहब ! बधाई !!!
@Harish Chandra Lohumi, धन्यवाद हरीश जी.