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रीत गए बिरही ये नैना रोते रोते रात गयी.

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Hindi Poetry
रीत गए बिरही ये नैना रोते रोते रात गयी.
नींद निगोड़ी बैरन मेरी क्या साजन के साथ गयी.
 
आई दरमियान ये दुनिया मितवा हम करते भी क्या,
अब न रही गर्मी रिश्तों में अब वो पुरानी बात गयी.
 
बहुत रहा घाटे का सौदा कीमत कम आंकी उसने,
बिलकुल व्यापारी निकला वो, बिक मैं जिसके हाथ गयी.
 
हवा ठुमकती ,शाखें नाचीं, झींगुर ने झनकार रची,
 जुगनू लिए रौशनी दौड़े,ये किसकी बारात गयी.
 
दिन भर सब्र संभाला ज्यों त्यों,देते रहे दिलासे हम,
वादों की आखिर सच्चाई खुल ही रात बिरात गयी.
 
थे जब तक आगोश में तेरे ख्वाबीदा थीं आँखें भी,
जब से बिछुड़े,हाथ से हमदम सपनों की सौगात गयी .

2 Comments

  1. dp says:

    जुगनू लिए रौशनी दौड़े…
    ham samajhe..machchhar torch lekar dhundhne nikale hamko….
    achchha andaz-e-baya sir ji.

  2. U.M.Sahai says:

    उम्दा रचना एस.एन. बधाई.

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