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शिखर भी देखेगा
Crowned Poem, Hindi Poetry |
चाँद जूठा पड़ा है,
ज़रा सा चखा था .
कुछ मोती उछाले थे,
देखो, अब टूटते, बिखरते है.
चादर उघड़ी,
रेशमी सुबह गुदगुदाती,
बुदबुदाती, अंगडाई लेने
आ पहुंची है, धीमे-धीमे .
जमीन पे पैर पड़ते ही ,
तरकश छोड़, निकल पड़े हैं
बाण, धनुष की तलाश में .
शौक बड़े नशीले,
आदत हो चुकी है
मगर ढक्कन लगाके,
चल देता हूँ ताकि
मल्लम ढूंढ़ सकूँ और लगा लूँ ,
उन घावों पे जिनका रक्त याद दिलाएगा
कि आगे जाते जाते,
और आएँगे, उस ओर .
बस बहुत हुआ हिलना,
लडखडाना, डगमगाना,
शिखर भी देखेगा,
कि पसीने के अंत में वो ही है .
– यशवर्धन गोस्वामी,
२०-१-११.
अति उच्च कोटि की कविता, बहुत अच्छे.उज्जवल भविष्य की ओर इंगित करता हुआ.
@siddha nath singh, बहुत बहुत धन्यवाद..!!
मैं सिद्धनाथ जी की बात से सहमत हूँ.यह है कविता.
@neeraj guru, दिल से धन्यवाद .
वाह क्या बात है
जीते राहो
बहुत बढ़िया अंदाज़ और रचना
हार्दिक बधाई
Stars 5 + +
@Vishvnand, धन्यवाद सर, धन्यवाद . आज में शब्दों की कमी महसूस करता हूँ .
बहुत बढ़िया…शाबाश यश!!
दादू की संगत का बहुत अच्छा सकारात्मक प्रभाव दिख रहा है… 🙂
उत्तम रचना…
@P4PoetryP4Praveen, यह यश भी अब शिखर देखेगा… 🙂
5 ***** सप्रेम भेंट…
@P4PoetryP4Praveen, धन्यवाद प्रवीण सर, और हाँ, दादाजी का बहुत प्रभाव पड़ा है .
वाह यशवर्धन आप ने तो कमाल कर दिया…. बहुत खूब , बहुत सुन्दर रचना ..
@anju singh, शुक्रिया अंजू जी, बहुत बहुत शुक्रिया .