« पुराना नोट ! | तू जाने नहीं ……!(गीत) » |
सूरज और हवा
Hindi Poetry |
सूरज की उत्साह हीनता से
ठंडा होता गया सब कुछ
ठिठुरता सा ,जमता सा और निष्प्राण सा
परन्तु सहचरी वायु का संचरण
बनाएगा इसे शनै: २ प्राणवान
इसी से होता जायेगा यह
धीरे २ प्रखर और तेजवान
आज का मद्धिम सूर्य
beautiful poem with deep sence of MOUSAM-badhaaee Dr.Saahib
@sushil sarna, भाई आप का स्नेह सदा मेरे साथ रहता है सदा आप मेरा उत्साह वर्धन करते हैं
हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ
वाह…
मनोहर अभिव्यक्ति ..
@Vishvnand, आशीर्वाद बना रहे मेरे लिए बड़ी सुखद अनुभूति है धन्यवाद से खिन छोटी न पद जाये
namaskar sir ,
bahut gahrai hai in panktiyon mai.
or apna kimti time meri kavita padne ke liye kharch kiya uske liye bahut bahut dhanywad …..
@anju singh, जो भी मेरे से सम्भव है यदि मैं किसी के कम आ सकूं तो मुझे प्रसन्नता होती है मेरे समय पर मित्रों का भी पूर्ण अधिकार है जो भी मुझे मित्रों की उन्नति के लए उचित लगता है उसे जरूर कह देता हूँ परन्तु इस से मन भेद नही होना चाहिए मत भेद तो रह सकते हैं पर मन भेद अनुचित लगता है
निरंतर सम्वाद बना रहे यही सब कुछ है हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ
सूरज और हवा के रिश्ते को बोहुत सुन्दरता से निभाया है आपने
बोहुत बोहुत बधाई हो सर!!
@pallawi, पल्लवी यही पूर्णता है इस को ही नियमत:स्वीकार जाना ही संयोग की सिद्धता है एकाकी पं अपूर्णता का द्योतक है
बहुत २ आभार
Bahut khoob…सूरज और हवा…ki baat-cheet…
Arthpoorn rachna ke liye badhaai… 🙂
@P4PoetryP4Praveen, आप की यह सहृदयता है पूर्णता इसी सहचरी में है
हार्दिक आभार स्वीकार करें
सूरज है निस्तेज अगर तो हवा हिलाती हाड़.
मौन मिला है सिंह अगर तो लोमड रहे दहाड़.
@siddha Nath Singh, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति की है हार्दिक आभार स्वीकार करें बन्धुवर