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हमदर्दी…है क्या?
Hindi Poetry |
दर्द में जिसने राहत दी
कहिये उसे ही हमदर्दी
अश्कों की जो ज़बां बदले
हारिल मन का बयां बदले
उतरे चहरे की उतरे ज़र्दी…
कहिये उसे ही हमदर्दी
दर्द में जिसने राहत दी
बाँध न बाँध सैलाब पर
ज़ोर नहीं टूटे ख़्वाब पर
नैया दिलाए दिलासों की…
कहिये उसे ही हमदर्दी
दर्द में जिसने राहत दी
ज़ख्मों पर सिखाये हँसना
उजड़े हुए को आये बसना
आग बुझे जिससे गम की…
रीतेश जी रचना अच्छी है लेकिन क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि एक साथ कई रचनायें प्रकाशित करने के बजाय कुछ अन्तराल से प्रकाशित करें तो उनका मूल्य कुछ और बढ़ जाता है !
त्राहि माम त्राहि माम…;) सोचता यही हूँ की हर रोज़ सिर्फ एक पोस्ट करूँ, पर यही सोचने से और चूकने से फिर मलाल होता है और इसलिए फिर एक ही दिन ये कवि कई कलमों से हलाल होता है!
हरीश जी की बातों से सहमत…
और आपकी उत्कृष्ट रचना के लिए आपको बधाई… 🙂
बधाई के लिए प्रवीण भाई बहुत शुक्रिया…पर हरीश जी को जो दी है हमने सफाई उसे पढ़ के कुछ तो हमसे भी सहमत हो जाइए…आपका भला करें साईं 😉
@Reetesh Sabr, 🙂