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ચાહું છું… ( प्यार है.. )
Gujrati Poetry |
મૌન રહી
બોલ્યા કરે છે..
ને.. ઝાકળ પાછળ
પલળ્યા કરે છે..
એવા અજનબી ને..
હું ચાહું છું…
ખુબ ચાહું છું….
વરસતા વરસાદમાં..
ઉભા રહી..
સતત નખશિખ
પલળવું છે..
ને… પળ પળ આમજ..
પલાળ્યા કરે છે…
એવા અજનબી ને..
હું ચાહું છું…
ખુબ ચાહું છું….
-ગાર્ગી
(Note : हिंदी पाठकों की सुविधा के लिए मूल गुजराती रचना का हिंदी अनुवाद : )
…कि जो
चुप रहकर भी सब कुछ कहता है…
ओस में छिपकर भीगता है ..
उस अजनबी से मुझे प्यार है…
बहुत प्यार है…
बरसते सावन में बाहर निकल,
बेरोक भीगते रहना है..
पल पल हरपल एसे ही…
भिगाए जाता है…
उस अजनबी से मुझे प्यार है…
बहुत प्यार है…
भावार्थ का अंदाज़
बहुत न्यारा है
मनभावन सा
और प्यारा है
बधाई …..
@Vishvnand,
दादा आपकी बधाई भी काव्यात्मक रहती है..
जो बहुत ही प्रोत्साहित करती है…
मूल गुजराती हूँ तो लिखती भी गुजराती में ही हूँ…
पर अब हिंदी में भी अच्छा लिखने की कोशिष कर रही हूँ…
बस आपके मार्गदर्शन की ज़रूरत रहगी…
बहुत-बहुत धन्यवाद…
waah गार्गी ji..
sudar पंक्ति… maafi chahti hun
par क्या आप को wakai….. hai
@anju singh,
हा हा हा…. बहुत-बहुत धन्यवाद…!!
@Gargi,
so sweet…
aap ka jawab or aap ki kavita mujhe dono hi bahut hi khubsurat lageee
dhanywad gargi ji
ખરેખર બહુજ સરસ રચના સે ..
@kishan,
અરે સરુ લાગ્યું ગુજરાતી કમેન્ટ વાંચીને અહીં…
ખુબ ખુબ આભાર કિશનભાઈ તમારો…
विश्वनंद दादा की बातों से सहमत हूँ…
अच्छा किया ताकि हिंदी पाठक भी आपकी रचना को समझ सकें…और पढ़ सकें… 🙂
बहुत अच्छी रचना…बहुत-बहुत बधाई… 🙂
@P4PoetryP4Praveen,
शुक्रिया प्रवीणजी…! 🙂 🙂 🙂
Sister vanchi ne khubaj prabhavit thayo