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“धन-लक्ष्मी का देशाटन”

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Hindi Poetry

“धन-लक्ष्मी का देशाटन”

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धन तो धन ही है, चाहे हो गोरधन या कालाधन,

भारत में इसका किया जाता “लक्ष्मी” से संबोधन !

धनी लोग गोरधन को रखते आ रहे अपने पास,

‘कालाधन’ को अपरिहार्य रूप से दे देते वनवास !

क्यों कि उसकी होती है कुंडली और छवि उपद्रवी,

तथा गोरे के सम्मुख काला लगता है अजनबी !

लक्ष्मी क्रुद्ध होती तब विकट हो जाती काली,

असहनीय लगने लगती तब उसकी विकराली !

देशाटन करना पड़ता, उसे जाना पड़ता विदेश,

जहां भी उसका सुखद हो पाता है स्थान विशेष !

स्विटजरलैंड ही उसकी होती है चुनिन्दा पसंद,

जहां वो रह सकती है पूर्णतः सुरक्षित स्वच्छंद !

स्वदेश में उसको सर्वत्र जो काली-कमाई कहते,

ऐसा कह कह कर थक कर के हाथ मलते रहते !

लोगों का चिल्लाना व्यर्थ ही चलता रहता है,

काली-लक्ष्मी का स्वरूप सतत फलता रहता है !

किन के द्वारा क्रुद्ध लक्ष्मी को भेजा गया विदेश,

सर्वज्ञात सरकार को नाम बताने में लग रही ठेस !

शायद इसलिए कि इसमें सहयोगी भी है सरकारी-तंत्र,

जिसका है आधार हमारा ही देश-गणतंत्र-स्वतंत्र !

ये सबकुछ है धनी-वर्ग और सरकार की मिलीभगत,

जनता असक्षम-असहाय है, चाहे पूरी है इससे अवगत !

क्या ये ही आम-राज्य,राम-राज्य,गणराज्य या स्वराज्य है?

जिसके आरम्भ से ही अब तक सम्पन्नों का साम्राज्य है !

10 Comments

  1. rajiv srivastava says:

    bahut khoob sir—bahut badahiya samikaran hai aache aur bure ka badahai

  2. Vishvnand says:

    बहुत खूब …सही कहा
    शायद अब ऐसा ही दुरव्यवहारी बन गया अपना सारा साम्राज्य है
    इस स्वराज में कर रहे वही सब जो पूर्वजों ने कहा ताज्य है
    भगवान् करेंगे इन दुर्जनों को भस्म तब तक सहना हमारा दुर्भाग्य है

    बहुत सुन्दर अर्थपूर्ण मार्मिक रचना के लिए अभिवादन

  3. Harish Chandra Lohumi says:

    अच्छी रचना सर ! “धन-लक्ष्मी” का “काली” रूप ! न जाने क्या अन्जाम होगा !

  4. Harish Chandra Lohumi says:

    काले गोरे का भेद नहीं, हर धन से इनका नाता है,
    कुछ और न आता हो इनको, इन्हें रिश्वत लेना आता है ,
    जिसे मान चुकी सारी दुनियाँ, ये बात वही दोहराते हूँ ,
    भारत के रहने वाले हैं , भारत को नोचे जाते हैं ।

  5. P4PoetryP4Praveen says:

    दादू, इसी मुद्दे को लेकर सुपरस्टार रजनीकांत की “Sivaji – The Boss” फ़िल्म भी बनी है…उसी की याद ताज़ा हो गयी… 🙂

    कुछ मामूली सुधार हैं…
    6वीं पंक्ति में “अजनवी” होगा “अजनबी” (शायद rhyming की वजह से किया है…)…
    और नीचे से 6वीं पंक्ति में “संयोगी” होगा “सहयोगी” (ऐसा मुझे लगता है…)…
    नीचे से 10वीं पंक्ति में “लोगों को चिल्लाना” होगा “लोगों का चिल्लाना”…

    • ashwini kumar goswami says:

      @P4PoetryP4Praveen,सहृदय धन्यवाद, प्रिय प्रवीण ! सुझावों से मैं पूर्णतः सहमत हूँ तथा आवश्यक पूर्ति करवा
      दी जाएगी ! सदा ही इसी प्रकार ध्यान दे दिया करो, यही एक अच्छे पाठक की
      विशेषता होती है क्यों कि मेरे सहयोगी द्वारा टाइपिंग मिस्टेक हो ही जाती है !

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