« »

कॉलेज की कैंटीन !

4 votes, average: 4.25 out of 54 votes, average: 4.25 out of 54 votes, average: 4.25 out of 54 votes, average: 4.25 out of 54 votes, average: 4.25 out of 5
Loading...
Hindi Poetry

मेरे कॉलेज मे थी एक जगह, जो लगती थी रंगीन ,

कोई उसे अड्डा कहता था ,तो कोई कहता था कैंटीन ,

क्लास मे तो लड़के यदा-कदा ही जाते थे ,

अपना धर्म मान कर यहाँ अवश्य आते थे !

नाश्ता ,ब्रेड पकोड़ा और चाय हर समय बनती थी ,

कभी आमलेट बनता ,तो कभी पूरी छनती थी ,

वो छोटे-छोटे लड़के जो आडर ले कर आते थे ,

भाग-भाग कर काम करते ,फिर भी डाँट खा जाते थे !

सुबह से ही कई नामचीन चेहरे यहाँ दिख जाते थे ,

कुछ लोग यहाँ पढ़ते थे ,तो कुछ चाय की चुस्की लेते थे ,

सिगरेट के छल्ले कोई बड़ी शान से उड़ाता था ,

एक जल्दी से ख़त्म करता .और दूजी मूह से लगाता था !

इसी जगह पर बैठ कर कई तरह की “प्लांनिंग” होती थी ,

कुछ लड़को की बात बिगड़ती तो कुछ की “सेट्टिंग” होती थी ,

कोई नैनन के तीर चला लड़की को पटाता था ,

कोई जल्दी से गिफ्ट थमा रोमियो बन जाता था !

कालेज के जब होते चुनाव,तो हलचल यहाँ बढ़ जाती थी ,

कैंटीन की दीवारे भी पोस्टर से पट जाती थी ,

नये नये नेता यहाँआकर माहौल रंगीन कर देते थे ,

जीत की खातिर दूसरो का बिल तक भी भर देते थे !

आज भी जब कभी किसी कालेज के आगे से गुज़रता हूँ ,

एक पल के लिए वहाँ की कैंटीन मे ज़रूर ठहरता हूँ ,

याद करता हूँ अपनी कैंटीन को, तो आँखे नम हो जाती है ,

कॉलेज तो भूल भी जाता है,पर कैंटीन याद रह जाती है !

डॉक्टर राजीव श्रीवास्तवा

17 Comments

  1. […] This post was mentioned on Twitter by Ravishankar, naradtwits. naradtwits said: कॉलेज की कैंटीन ! | p4poetry http://bit.ly/gHfXdH […]

  2. Vishvnand says:

    बहुत सुन्दर मनभावन रचना
    (ज्यादा स्टार पाने कुछ शब्दों को सुधारना )
    प्रशंसनीय अंदाज़ …

    केन्टीन की बात छेड़कर सबकी पोल खुलवाते हो,
    इन यादों से क्या होता जब 5 स्टार में जाते हो …. 🙂

  3. Harish Chandra Lohumi says:

    अच्छी याद दिलायी अड्डे की ! 🙂 बधाई !!!

  4. siddha nath singh says:

    सुमधुर संस्मरण की सुन्दर प्रस्तुति.

  5. santosh bhauwala says:

    आदरणीय राजीव जी
    पुरानी यादें फिर ताजा हो गयी, बहुत ही सुंदर रचना, बधाई हो I

  6. santosh bhauwala says:

    आदरणीय राजीवजी
    रचना अच्छी लगी ,बधाई हो
    संतोष

  7. santosh bhauwala says:

    आदरणीय विश्वनान्दजी
    सीधे दिल में बस गई आपकी रचना, बधाई हो
    संतोष

    • santosh bhauwala says:

      मैंने ये कमेन्ट विश्वनान्दजी की कविता ‘तुम मानो या न मानो’ को दिया था गलती से इधर आ गया
      संतोष

  8. renukakkar says:

    very nice poem..reminded me of our college canteen…though all colleges have similar canteen scenario, but in our college we also had a separate section for girls…

  9. वाह वाह ,मजा आ गया, आप की ये कबिता जायकेदार लगी , पुरानें दिन याद आ गए – बधाई

Leave a Reply