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होली शुभ हो
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ओ भाई ,ऐसे फागुन आऍ ।
जो न गाऍ गीत,गऐ हो रीत
खूब बतियाऍ
ओ भाई ,ऐसे फागुन आऍ।
दरक गई है प्रीत परस्पर
ढूढै मिले न मन के मीत
हारे हुये ,समय के संग संग
कहां मिली है सबको जीत।
दुख सुख साथ साथ चलते हैं
हम सबको ललचाऍ
ओ भाई ,ऐसे फागुन आऍ।
नये सृजन हों, नव आशाऍ
नये रंग हों नव आभाऍ
ओ भाई ,ऐसे फागुन आऍ।
कमलेश कुमार दीवान
१० मार्च ०९
प्यारी सी सुन्दर भावों की रचना
बहुत मन भायी ….
ऋतु के आने से पहले ही भँवरे की गुंजार सखे.
शायद घर के पिछवाड़े दे दस्तक रही बहार सखे.